देवभूमि उत्तराखण्ड के प्रवेशद्वार कोटद्वार में लालढांग मार्ग, देवी रोड़ पर स्थित है माता सुखरौदेवी का मन्दिर। पौराणिक जनश्रुतियों के अनुसार जहां यह सुखरौदेवी मन्दिर स्थित है उस स्थान पर द्वापर युग में महाराजा दुश्यन्त द्वारा सर्वप्रथम मन्दिर कि स्थापना की गई थी । उस समय यह क्षेत्र वनों से आच्छादित था तथा इस स्थान पर वट एवं पीपल के प्रचीन युगल वृक्ष थे जिनके नीचे कण्वाश्रम जाने वाले पथिक विश्राम किया करते थे। इसी कण्वाश्रम को महराज भरत की जन्मस्थली माना जाता है। समय के साथ साथ बस्तियों का निर्माण होता चला गया पेड़ कटते चले गये । इस स्थान पर लोगों ने मन्दिर के अवशेष देखे तो पूजा अर्चना करने लगे। प्राप्त जानकारियों के अनुसार दो छोटे-छोटे आलों में मूर्तियां रखी हुई थी जिनकी लोग पूजा अर्चना किया करते थे।
यह भी जानकारियां प्राप्त हुई हैं कि यहां पहले एक बाबा इन्द्रगिरी एक झोपड़ी बनाकर रहते थे उन्होने एक महिला की सहायता से दो छोटे-छोटे मन्दिर बनवाये थे जो काफ़ी जीर्ण-शीर्ण हो गये थे, इन मन्दिरों में से देवी के मन्दिर का गर्भगृह कटे पत्थरों से बना था बाहरी प्रकोष्ठ ईंटों से निर्मित था। गर्भगृह से प्रतीत होता है कि गर्भगृह हि पहले बना होगा। धीरे धीरे मन्दिर के उत्थान हेतु समिति की स्थापना की गई। स्थानीय नागरिकों द्वारा भी मन्दिर के उत्त्थान में काफी सहयोग दिया गया। इसी योगदान से धर्मशाला तथा पुस्तकालय का निर्माण किया गया। स्थानीय नागरिकों की मन्दिर में अटूट श्रद्धा है। मन्दिर में दुर्गा, पार्वती, राधाकृष्ण, शिव तथा सभी देवी-दवताओं की मनमोहक मूर्तियां तथा चित्र लगे हुये हैं
गढ़वाल के प्रवेशद्वार कोटद्वार कस्बे से कोटद्वार-पौड़ी राजमार्ग पर लगभग ३ कि०मी० आगे खोह नदी के किनारे बांयी तरफ़ एक लगभग ४० मीटर ऊंचे टीले पर स्थित है गढ़वाल प्रसिद्ध देवस्थल सिद्धबली मन्दिर। यह एक पौराणिक मन्दिर है । कहा जात...
कोटद्वार भाबर क्षेत्र की प्रमुख एतिहासिक धरोहरों में कण्वाश्रम सर्वप्रमुख है जिसका पुराणों में विस्तृत उल्लेख मिलता है। हजारों वर्ष पूर्व पौराणिक युग में जिस मालिनी नदी का उल्लेख मिलता है वह आज भी उसी नाम से पुकारी जाती है...
कोटद्वार पौड़ी मोटरमार्ग पर कोटद्वार से लगभग १३ किलोमीटर आगे खोह नदी के किनारे समुद्र की सतह से ६०० मीटर की ऊंचाई पर मुख्यमार्ग पर स्थित है "दुर्गादेवी मन्दिर"। आधुनिक मन्दिर सड़क के पास स्थित है परन्तु प्रचीन मन्द...