नवनाथ परम्परा में गोरखनाथ जी नौ वें नाथ जो कि गुरू मछिन्दरनाथ के शिष्य थे। गुरु गोरखनाथ ने हठयोग का प्रचार किया था और अनेक ग्रन्थों की रचना भी की थी। अवधारणा है कि गुरू गोरखनाथ की केवल दो ही स्थानों पर गुफायें बनाई गई हैं एक तो त्र्यम्बक वाराह तीर्थ में और दूसरी केदारखण्ड श्रीनगर में। ऋषिकेश-श्रीनगर राजमार्ग पर आई०टी०आई० तथा पालीटेक्निक जिस स्थान पर मिलते हैं वहां से एक पैदल मार्ग पौड़ी मार्ग की तरफ जाता है, जो कि मुख्यतया पौड़ी-खण्डा-करैंखाल मार्ग के नाम से जाना जाता है। उसी मार्ग पर लगभग २०० मीटर की दूरी पर उत्तमवाला, अपर भक्तियाना, बीघा धारा के पास स्थित है। यहां गुरू गोरखनाथ की समाधि तथा उनकी मूर्ति एक भव्य शिवलिंग के साथ स्थापित है। इस मन्दिर में नाथ सिद्ध परम्परा के प्राचीन अवशेष देखने को मिलते हैं। एटकिंसन के मतानुसार समाधि की रचना सन् १६६७ ई० में हुई थी जबकि पुजारियों के पास से प्राप्त एक ताम्रपत्र में सन् १६६७ ई० इसके जीर्णोद्धार की तिथि है। प्राचीनकाल में गुफा मन्दिरों की संरचना तथा बनावट कैसी रही होगी इसका अनुमान इस मन्दिर को देखकर लगाया जा सकता है। वस्तुत: बाहर से किसी भवन की तरह दिखने वाला दिखने वाला यह मन्दिर अन्दर से चट्टान को काट व तराश कर बनाई गई गुफा है। मुख्य गुफा में प्रवेशा करने का द्वार बहुत संकरा तथा छोटा है (साढ़े तीन फीट ऊंचा व पौने दो फीट चौड़ा) जिसमें घुटनों के बल ही प्रवेश किया जा सकता है। लगभग ६-७ फीट अन्दर जाकर एक गोलाकार गुफा है जिसके मध्य में गुरु गोरखनाथ की मूर्ति एवं मूर्ति के सम्मुख चरण-पादुका स्थापित है। गुरू गोरखनाथ की यह ध्यानस्थ मूर्ति लगभग पौने दो फीट ऊंची काले पत्थर की अत्यधिक सुन्दर है। मूर्ति का इतना सजीव चित्रण देखकर अनुमान लगाया जा सकता है कि मूर्तिकार नि:सन्देह कुशल तथा रचनात्मक रहा होगा। गुफा कि दीवारें एक कठोर चट्टान को बारीक छेनियों तथा हथौड़ियों की सहायता से सपाट किया गया है जो कि प्राचीनकाल के काश्तकारों की कार्यकुशलता तथा परिश्रम का परिचय देती हैं। गुफा का शुष्क, वातानुकूलित एवं आर्द्रतारहित वातावरण देखकर यह अनुमान लगाया जा सकता है कि इस तरह की गुफायें साधकों हेतु उपयुक्त साधना स्थल रहा करती होंगी। गुफा के ठीक सामने एक चबूतरा है जिस पर चौखम्बी मन्दिर बना हुआ है जो कि मुख्यतया भैरवनाथ जी का है। इस चबूतरे पर बटुक भैरव की दो मूर्तियां है जो कि सिन्दूर से पुती हुई हैं। मूर्ति के सम्मुख ही त्रिशूल, चिमटा, कड़े, मून्दड़े रखे हुये हैं। बटुक भैरव के साथ हनुमान जी की मूर्ति भी स्थापित है। चबूतरे के चारों स्तंम्भ पत्थर के बने हुये हैं जो कि मण्डप की बड़े बड़े प्रस्तर पटलों से बनी आकर्षक छत का भार मजबूती से संभालकर चौखम्बी को सुरक्षा प्रदान किये हुये हैं।
कंसमर्दिनी सिद्धपीठ की गणना गढ़वाल के देवी सिद्धपीठों में की जाती है। परंपराओं के अनुसार इसको शंकराचार्य के आदेश से विश्वकर्मा ने बनाया था। पुराणों में प्रसिद्ध है कि कंस द्वारा जब महामाया को शिला पर पटका गया था तो वे उसके ...
श्रीनगर में यह मन्दिर अत्यन्त प्रसिद्ध माना जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार मान्यता है कि ब्रह्महत्या के भय से भागते हुये भगवान शिव ने इस स्थान पर नागों अर्थात सर्पों को छुपा दिया था। जिस गली में यह मन्दिर स्थित है उसे स्...
कटकेश्वर महादेव (घसिया महादेव) श्रीनगर से रूद्रप्रयाग जाने वाले मार्ग पर श्रीनगर से लगभग एक किलोमीटर की दूरी पर मुख्य मार्ग पर स्थित है "कटकेश्वर महादेव"। सड़के दायें दक्षिण दिशा में स्थित इस मन्दिर का निर्...
श्रीनगर स्थित जैन मन्दिर अपनी कलात्मकता तथा भव्यता के प्रसिद्ध है। यह जैन धर्म की दिगम्बर शाखा के अनुयायियों का मन्दिर है। कहा जाता है कि १८९४ ईसवी की विरही की बाढ़ से पहले यह मन्दिर पुराने श्रीनगर में स्थित था परन्तु बाढ़ म...
गढ़वाल के पांच महातम्यशाली शिव सिद्धपीठों किलकिलेश्वर, क्यूंकालेश्वर, बिन्देश्वर, एकेश्वर, ताड़केश्वर में किलकिलेश्वर का प्रमुख स्थान है। श्रीनगर के ठीक सामने अलकनन्दा के तट पर विशाल चट्टान पर स्थित यह मन्दिर युगों से अलकनन्...
कमलेश्वर महादेव के उत्तर में अलकनन्दा तट पर स्थित केशोराय मठ उत्तराखण्ड शैली में बना हुआ अत्यन्त सुन्दर मन्दिर है। बड़ी-बड़ी प्रस्तर शिलाओं से बनाये गये इस मन्दिर की कलात्मकता देखते ही बनती है। कहा जाता है कि संवत् १६८...