पालीटेक्निक कालेज श्रीनगर एवं एस० एस० बी० के मध्य में गंगातट के केदारघाट के ऊपर स्थित शंकरमठ श्रीनगर का प्राचीन मन्दिर है। उत्तराखण्ड शैली में बना हुआ यह मन्दिर बहुत आकर्षक है। हालांकि शंकरमठ नाम से इस मन्दिर मठ के शैव होने का अनुमान लगता है परन्तु वस्तुत: यह मन्दिर भगवान विष्णु एवं देवी लक्ष्मी का मन्दिर है। भगवान लक्ष्मीनारायण की एक भव्य प्रतिमा इस मन्दिर के गर्भगृह में स्थापित है। ऐसा कहा जाता है कि इस मन्दिर की स्थापना आदि गुरू शंकराचार्य ने की थी। परन्तु गढ़वाल के इतिहासकार हरिकृष्ण रतूड़ी के अनुसार गढ़वाल के राजा प्रदीपशाह ने अपने यशस्वी मत्रीं धर्माधिकारी शंकर डोभाल की स्मृति में सम्वत् १७६३ विक्रमी में इस मन्दिर को बनवाया था। इतिहासकार श्री शिव प्रसाद नैथानी के अनुसार "शंकर डोभाल नाम का देवेत्री/धर्माधिकारी तथा वख्शी फतेहपतिशाह गढ़नरेश के राज्यकाल के प्रारंभिक दिनों में था। उसे राजा (वस्तुत: राजमाता) ने १६७० ईसवी के ताम्रपत्र द्वारा मंदिर के आस-पास की भूमि का विषद क्षेत्र मठ/ठाकुरद्वारा बनाने हेतु प्रदान किया था। तब शंकर डोभाल ने स्वामी जगन्नाथ भागवती के शिष्य स्वामी भगवानदास को ठाकुरद्वारा बनवाकर तथा भूसंम्पत्ति को राजाज्ञा से प्रदान करवाकर मठपति बनवाया था। शंकर डोभाल क्योंकि स्वयं भी इसी मठ में रहता था अत: उसके द्वारा निर्मित, सेवित एवं निरीक्षित मठ मन्दिर के साथ उसका नाम जनमानस भुला न सका और शंकरमठ नाम प्रसिद्ध हो गया।"
मन्दिर के भीतर अत्यन्त कलापूर्ण मूर्तियां हैं तथा मन्दिर के दरवाजे पर लगे शिलालेख से इस मन्दिर की प्राचीनता का साक्ष्य मिलता है। मन्दिर के गर्भगृह में लक्ष्मीनारायण की १.४८ मीटर ऊंची सर्वांग सुन्दर मूर्ति विराजमान है। जिसमें विष्णु भगवान के चतुर्भुजी रूप के दर्शन होते हैं। साथ में देवी लक्ष्मी की विश्वमोहिनी मूर्ति है। कहा जाता है कि यह स्वरूप उन्होने उस विराट स्वंयवर में धारण किया था जहां देवर्षि नारदजी को बंदर का स्वरूप मिला था। नारद मोह पुराण की प्रसिद्ध घटना यहीं हुई थी। केदारखण्ड से प्राप्त वर्णन के अनुसार इसी स्थान पर "अश्वतीर्थ" था और यहीं देवल ऋषि और राजा नहुष ने तपस्या की थी।
कमलेश्वर महादेव के उत्तर में अलकनन्दा तट पर स्थित केशोराय मठ उत्तराखण्ड शैली में बना हुआ अत्यन्त सुन्दर मन्दिर है। बड़ी-बड़ी प्रस्तर शिलाओं से बनाये गये इस मन्दिर की कलात्मकता देखते ही बनती है। कहा जाता है कि संवत् १६८...
श्रीनगर स्थित जैन मन्दिर अपनी कलात्मकता तथा भव्यता के प्रसिद्ध है। यह जैन धर्म की दिगम्बर शाखा के अनुयायियों का मन्दिर है। कहा जाता है कि १८९४ ईसवी की विरही की बाढ़ से पहले यह मन्दिर पुराने श्रीनगर में स्थित था परन्तु बाढ़ म...
नवनाथ परम्परा में गोरखनाथ जी नौ वें नाथ जो कि गुरू मछिन्दरनाथ के शिष्य थे। गुरु गोरखनाथ ने हठयोग का प्रचार किया था और अनेक ग्रन्थों की रचना भी की थी। अवधारणा है कि गुरू गोरखनाथ की केवल दो ही स्थानों पर गुफायें बनाई गई है...
श्रीनगर एस०एस०बी कैम्पस के ठीक सामने गंगापार अलकनन्दा के दांयें किनारे पर २०० फीट ऊंची चट्टान पर रणिहाट नामक स्थान है, जहां पर राजराजेश्वरी देवी का बहुत प्राचीन तथा विशाल मंदिर है। मन्दिर की ऊंचाई लगभग ३० फीट है तथा ...
कंसमर्दिनी सिद्धपीठ की गणना गढ़वाल के देवी सिद्धपीठों में की जाती है। परंपराओं के अनुसार इसको शंकराचार्य के आदेश से विश्वकर्मा ने बनाया था। पुराणों में प्रसिद्ध है कि कंस द्वारा जब महामाया को शिला पर पटका गया था तो वे उसके ...
देवभूमि गढ़वाल के अतिप्राचीनतम शिवालयों में से एक महत्वपूर्ण शिवालय है कमलेश्वर महादेव मन्दिर। इस मन्दिर पार्श्व भाग में गणेश एवं शंकराचार्य की मूर्तियां हैं। मुख्यमन्दिर के एक और कमरे में बने सरस्वती गंगा तथा अन्नपूर्णा की...