श्रीनगर में यह मन्दिर अत्यन्त प्रसिद्ध माना जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार मान्यता है कि ब्रह्महत्या के भय से भागते हुये भगवान शिव ने इस स्थान पर नागों अर्थात सर्पों को छुपा दिया था। जिस गली में यह मन्दिर स्थित है उसे स्थानीय लोग नागेश्वर गली के नाम से जानते हैं। कहा जाता है कि अलकनन्दा के किनारे गंगाघाट में पहले एक नागकुण्ड हुआ करता था तथा यह मन्दिर वहीं स्थित था परन्तु बाढ़ में यह मन्दिर बह जाने के कारण स्थानीय नागरिकों द्वारा नवीन श्रीनगर में इस स्थान पर मन्दिर तथा मूर्तियों की प्रतिष्ठा की गई। स्कन्दपुराण केदारखण्ड में उल्लेख है कि :
अर्थात् "जहां विष्णु लक्ष्मी के साथ निवास करते हैं (अर्थात् बदरीनाथ मठ) वहां से आधे कोस की दूरी पर गंगा के दक्षिणी तट पर नागेश्वर विराजमान रहते हैं जिनकी स्तुति देवता सदा करते रहते हैं" कहा जाता है कि यहीं पर नागों ने शिव सानिध्य के लिये कठोर तप किया था। मान्यता है कि नागतीर्थ में स्नान करने से पुनर्जन्म नहीं होता तथा मोक्ष की प्राप्ति होती है।
मन्दिर का स्वरूप तथा निर्माण शैली आधुनिक सामान्य मन्दिरों की तरह है। विशाल पीपल के वृक्ष के नीचे स्थित नागेश्वर महादेव के मन्दिर में लगभग १ फीट उंचा पत्थर का शिवलिंग स्थापित है। पुराने मन्दिर के बाढ़ में ध्वस्त होने के बाद संभवतया यह शिवलिंग पुराने मन्दिर से लाकर यहां स्थापित किया गया होगा। मन्दिर में गौरीपुत्र गणेश, ध्यानमग्न भगवान शिव तथा भगवान विष्णु के चतुर्भुजी रूप की प्राचीन मूर्तिया स्थापित हैं। स्थानीय लोगों के लिये यह मन्दिर आस्था का केन्द्र है। प्रत्येक सोमवार के अलावा, सावन के सोमवार, महाशिवरात्रि तथा नागपंचमी को इस मन्दिर में जलाभिषेक करने वाले भक्तों का तांता लगा रहता है।
कंसमर्दिनी सिद्धपीठ की गणना गढ़वाल के देवी सिद्धपीठों में की जाती है। परंपराओं के अनुसार इसको शंकराचार्य के आदेश से विश्वकर्मा ने बनाया था। पुराणों में प्रसिद्ध है कि कंस द्वारा जब महामाया को शिला पर पटका गया था तो वे उसके ...
नवनाथ परम्परा में गोरखनाथ जी नौ वें नाथ जो कि गुरू मछिन्दरनाथ के शिष्य थे। गुरु गोरखनाथ ने हठयोग का प्रचार किया था और अनेक ग्रन्थों की रचना भी की थी। अवधारणा है कि गुरू गोरखनाथ की केवल दो ही स्थानों पर गुफायें बनाई गई है...
कमलेश्वर महादेव के उत्तर में अलकनन्दा तट पर स्थित केशोराय मठ उत्तराखण्ड शैली में बना हुआ अत्यन्त सुन्दर मन्दिर है। बड़ी-बड़ी प्रस्तर शिलाओं से बनाये गये इस मन्दिर की कलात्मकता देखते ही बनती है। कहा जाता है कि संवत् १६८...
शीतलामाता को राजस्थान में जगतरानी के नाम से जाना जाता है। स्थानीय नागरिकों में मन्दिर का बहुत महातम्य है। कहा जाता है कि भक्तों की मनोकामना को माता शीतला अवश्य पूरा करती है। कहा जाता है कि शंकराचार्य को यहीं पर हैजे की अत्...
पालीटेक्निक कालेज श्रीनगर एवं एस० एस० बी० के मध्य में गंगातट के केदारघाट के ऊपर स्थित शंकरमठ श्रीनगर का प्राचीन मन्दिर है। उत्तराखण्ड शैली में बना हुआ यह मन्दिर बहुत आकर्षक है। हालांकि शंकरमठ नाम से इस मन्दिर मठ के शैव होन...
श्रीनगर स्थित जैन मन्दिर अपनी कलात्मकता तथा भव्यता के प्रसिद्ध है। यह जैन धर्म की दिगम्बर शाखा के अनुयायियों का मन्दिर है। कहा जाता है कि १८९४ ईसवी की विरही की बाढ़ से पहले यह मन्दिर पुराने श्रीनगर में स्थित था परन्तु बाढ़ म...