देवभूमि गढ़वाल के अतिप्राचीनतम शिवालयों में से एक महत्वपूर्ण शिवालय है कमलेश्वर महादेव मन्दिर। इस मन्दिर पार्श्व भाग में गणेश एवं शंकराचार्य की मूर्तियां हैं। मुख्यमन्दिर के एक और कमरे में बने सरस्वती गंगा तथा अन्नपूर्णा की धातु मूर्तियां हैं। शिववाहन नन्दी कि एक विशाल कलात्मक पीतल की मूर्ति मुख्य मन्दिर से संलग्न एक छोटे से कमरे में स्थित है। मन्दिर में ही मदमहेश्वर महादेव का पीतल का मुखौटा भी स्थित है। प्रसिद्ध है कि कमलेश्वर महादेव मन्दिर कि रचना मूल रूप से शंकराचार्य ने कराई थी। तथा इसका जीर्णोद्धार उद्योगपति बिड़ला जी ने करवाया था।
स्कन्दपुराण के केदारखण्ड के अनुसार त्रेतायुग में भगवान रामचन्द्र रावण का वध कर जब ब्रह्महत्या के पाप से कलंकित हुये तो गुरु वशिष्ट की आज्ञानुसार वे भगवान शिव की उपासना हेतु देवभूमि पर आये इस स्थान पर आकर उन्होने सहस्त्रकमलों से भगवान शिव की उपासना की जिससे इस स्थान का नाम "कमलेश्वर महादेव" पड़ गया। कमलेश्वर में मुख्यरूप से तीन उत्सव होते हैं १- अचला सप्तमी २- शिवरात्रि ३- बैकुन्ठ चतुर्दशी बैकुन्ठ चतुर्दशी (कार्तिक मास कि पूर्णिमा से पहला दिन) को यहां एक विशेष उत्सव होता है। इस समय संतान प्राप्ति की इच्छुक महिलायें यहां रात्रिभर प्रज्वलित दीपक हाथों में लेकर खड़ी रहकर भगवान शिव की स्तुति करती हैं। प्रात:काल में इस दीपक को अलकनन्दा में प्रवाहित करने के पश्चात शिव का पूजन किया जाता है। वैसे तो तीनों अवसरों पर श्रद्धालु भक्तो की अपार भीड़ यहां दर्शनार्थ व पूजा अर्चना हेतुअ यहां आती है। परन्तु बैकुन्ठ चतुर्दशी के अवसर पर यहां इतनी भीड़ होती है कि वर्तमान में इसने एक विशाल मेले का रूप ले लिया है। चार दिनों तक चलने वाले इस पर्व को अब धर्मिक-सांस्कृतिक विकास मेले का रुप देकर प्रशासन की ओर से आयोजित किया जाता है।
इस बार इस पूजा का आयोजन दिनांक 10-नवंबर-2019 (रविवार) को किया जा रहा है। जिसमें देश के विभिन्न भागों से दम्पत्ति आकर सम्मिलित होकर पूजा करते हैं। जो लोग इस पूजा हेतु रजिस्ट्रेशन करवाने के इच्छुक हैं वे नीचे दिये गये लिंक पर क्लिक करके अपनी डिटेल्स भर दें, रजिस्ट्रेशन पूरा होने के बाद आपको एक रजिस्ट्रेशन नंबर मिलेगा जिसे आप लिखकर रख लें, और पूजा वाले दिन मंदिर पहुंचकर पूजा हेतु कमलेश्वर सेवा दल को आप यह नंबर दे दें। धन्यवाद ।
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कंसमर्दिनी सिद्धपीठ की गणना गढ़वाल के देवी सिद्धपीठों में की जाती है। परंपराओं के अनुसार इसको शंकराचार्य के आदेश से विश्वकर्मा ने बनाया था। पुराणों में प्रसिद्ध है कि कंस द्वारा जब महामाया को शिला पर पटका गया था तो वे उसके ...
पालीटेक्निक कालेज श्रीनगर एवं एस० एस० बी० के मध्य में गंगातट के केदारघाट के ऊपर स्थित शंकरमठ श्रीनगर का प्राचीन मन्दिर है। उत्तराखण्ड शैली में बना हुआ यह मन्दिर बहुत आकर्षक है। हालांकि शंकरमठ नाम से इस मन्दिर मठ के शैव होन...
नवनाथ परम्परा में गोरखनाथ जी नौ वें नाथ जो कि गुरू मछिन्दरनाथ के शिष्य थे। गुरु गोरखनाथ ने हठयोग का प्रचार किया था और अनेक ग्रन्थों की रचना भी की थी। अवधारणा है कि गुरू गोरखनाथ की केवल दो ही स्थानों पर गुफायें बनाई गई है...
कटकेश्वर महादेव (घसिया महादेव) श्रीनगर से रूद्रप्रयाग जाने वाले मार्ग पर श्रीनगर से लगभग एक किलोमीटर की दूरी पर मुख्य मार्ग पर स्थित है "कटकेश्वर महादेव"। सड़के दायें दक्षिण दिशा में स्थित इस मन्दिर का निर्...
श्रीनगर स्थित जैन मन्दिर अपनी कलात्मकता तथा भव्यता के प्रसिद्ध है। यह जैन धर्म की दिगम्बर शाखा के अनुयायियों का मन्दिर है। कहा जाता है कि १८९४ ईसवी की विरही की बाढ़ से पहले यह मन्दिर पुराने श्रीनगर में स्थित था परन्तु बाढ़ म...
श्रीनगर एस०एस०बी कैम्पस के ठीक सामने गंगापार अलकनन्दा के दांयें किनारे पर २०० फीट ऊंची चट्टान पर रणिहाट नामक स्थान है, जहां पर राजराजेश्वरी देवी का बहुत प्राचीन तथा विशाल मंदिर है। मन्दिर की ऊंचाई लगभग ३० फीट है तथा ...