उत्तराखंड के बागेश्वर जनपद से करीब ३० कि०मी० दूर माँ नन्दा भगवती का भव्य मंदिर पोथिंग नामक गाँव में स्थित है। जो कपकोट क्षेत्र के अन्तर्गत आता है। यह मंदिर क्षेत्रवासियों को ही नहीं बल्कि दूर-दराज के लोगों को भी अपनी भव्यता एवं आस्था से अपनी ओर आकर्षित करता है। यहाँ प्रतिवर्ष भाद्रपद मास यानि अगस्त-सितम्बर में माँ नंदा भगवती की पूजा की जाती है। जिसमें दूर-दूर से भक्तजन इस पूजा में सम्मिलित होने के लिए आते हैं। जिसमें विशाल जन-समुदाय एकत्रित होता है। अपनी भव्यता और विशालता के कारण अब इस पूजा ने एक मेले का रूप ले लिया है जिसे 'पोथिंग का मेला' नाम से जाना जाता है। यहाँ का मंदिर भले ही नवीन शैली में बना हो लेकिन यहाँ हमें प्राचीन काल से स्थापित मंदिर के अन्दर रखे गए शिलाओं के दर्शन होते हैं।
पोथिंग में माँ नन्दा भगवती की पूजा का शुभारम्भ श्रावण महीने के पहले गते यानि हरेले के दिन से ही हो जाता है। इस दिन कपकोट के उत्तरौडा गाँव से भगवती, लाटू, गोलू देवताओं के डंगरियों और स्थानीय निवासियों के द्वारा 'दूध केले' का पेड़ लाकर गाँव में ही निर्धारित स्थान पर लगाया जाता है। लगभग एक महीने तक इस केले के पेड़ को गाय के दूध द्वारा सींचा जाता है। भाद्रपद महीने के सप्तमी को इस पेड़ को काटकर अष्टमी के दिन माँ की प्रतिमा बनाने के लिए इस केले के पेड़ का प्रयोग किया जाता है। भाद्रपद के नवरात्रि के प्रतिपदा के दिन गाँव के भगवती मन्दिर जिसे तिबारी नाम से जाना जाता है में गेहूं भराई के साथ ही देवी भगवती की पूजा प्रारम्भ हो जाती है। इस दिन यहाँ के स्थानीय लोग माँ को अर्पित करने के लिए गेहूं, जौ, तिल इत्यादि लाते हैं और देवी भगवती, साथी लाटू देवता और गोलू राजा के साथ अपने डंगरियों में अवतरित होकर लोगों को दर्शन देती है। सात रातों तक माँ का जागरण रहता है और आठवें दिन पूजा का आयोजन होता है। जिसमें दूर-दूर से लोग माँ के दर्शनार्थ आते हैं। भाद्रपद अष्टमी को पोथिंग (बागेश्वर) में माँ नन्दा के दर्शनार्थ एक विशाल जनसमुदाय उमड़ पड़ता है। यहाँ माँ नन्दा भगवती की पूजा के समय जो पूड़ियाँ बनाई जाती हैं, वो हमेशा की आकर्षण का केंद्र रहती हैं, एक पूड़ी का वजन लगभग 250 ग्राम से लेकर 300 ग्राम तक होता है। भक्तजन इस पूड़ी को ही प्रसाद स्वरूप ग्रहण करते हैं।
उत्तराखण्ड में ऐसे कई उदाहरण देखने को मिलते हैं जहां एक वंश/जाति के लोग किन्ही कारणों से किसी अन्य स्थान पर जाकर बस गये थे पलायन के समय ये लोग अपने साथ अपने अराध्य देवी देवताओं को साथ ले जाते थे जैसे कि चम्पावत क्षेत्र के डुंगढ़ियाल नेगी जाति के लोग अपने साथ अपने इष्ट देवता "गोरिल देवता" को साथ पौड़ी ले आये थे जिन्हे आज "कण्डोलिया देवता" के नाम से जाना जाता है।
इस मन्दिर की स्थापना के पीछे भी एक ऐसा ही विवरण मिलता है। मन्दिर की स्थापना लगभग ३०० वर्ष पूर्व स्व० श्री भीमसिंग गढ़िया पुत्र स्व० श्री बालव सिंह गढ़िया, जो कि पोथिंग गांव के गढ़िया वशं के पूर्वज थे, ने की थी। पहले यहां खुले स्थान में एक छोटा सा मन्दिर हुआ करता था, इसके बाद लगभग १९९५ के आस-पास पोथिंग गांव के निवासियों के आपसी सहयोग से यहां इस भव्य मन्दिर का निर्माण किया। कहा जाता है गढ़िया वंश के ये पूर्वज लगभग ३०० वर्ष पूर्व गढ़वाल से यहां पोथिंग में आकर बस गये थे यहां आते समय ये लोग अपनी कुलदेवी माँ नन्दा भगवती को भी साथ लाये थे। मंदिर में प्राचीन काल की पत्थर की कुछ शिलायें स्थापित हैं जिन्हे ये पूर्वज अपने साथ लाये थे। क्योकिं ये लोग गढ़वाल से आकर यहां बस गये थे संभवतया इसीलिये इन लोगों को "गढ़ी" गढ़िया कहा जाता था। गढ़िया जाति के लोगों के गढ़वाल से आने के पीछे मतभेद हैं कुछ लोगों का मानना है कि ये असकोट से यहां आकर बस गये थे। खैर वास्तविकता जो भी रही हो लेकिन पारस्परिक समन्वय, सामन्जस्य तथा प्रेम की भावना जो भावना यहां दिखती है आजकल बहुत मुश्किल से मिलती है मन्दिर की व्यवस्था प्रबन्धन हेतु किसी कार्यकारी समिति का गठन नहीं किया गया है। संभवतया पोथिंग गांव के निवासियों के इसी पारस्परिक प्रेम तथा भाईचारे की वजह से ही आज तक इस मन्दिर के हर पूजा, भण्डारा, मेला, व्यवस्था-प्रबन्धन, निर्माण, जीर्णोद्धार निर्विघ्न होकर शातिंपूर्ण ढंग से संपन्न होते है। मन्दिर में पूजापाठ मन्दिर के धामी दानू एवं कन्याल परिवार के लोग हैं। मन्दिर में जो विशेष तरह का प्रसाद वितरित होता है उसके लिये गेंहूं पीसकर आटा तैयार करने के कार्य भी एक विशेष परिवार द्वारा किया जाता है। कहा जाता है कि गढ़िया वंश के पूर्वज अपने साथ पुजारी तथा आटा पीसने वाले को भी साथ लाये थे जिनके वशंज आज भी इस परंपरा का निर्वहन कर रहे हैं। गढ़िया वंश के पूर्वज अपने साथ निम्नलिखित लोगों को भी अपने साथ लाये थे
१- दानू और कन्याल जाति के लोग जो कि मन्दिर में पूजा-पाठ करते हैं। मंदिर में माँ नंदा के डंगरिए दानु परिवार के लोग होते हैं गांव में सिर्फ २ दानु परिवार हैं। यदि यह परिवार किसी कारणवश अपवित्र रहते हैं तब डंगरिए चमोली के तोरती से दानु परिवार के लोग होते हैं।
२- ढोली/दास बन्धु - जो कि माता के जागरण में पूजा के समय ढोल बजाकर देव डांगरियों को अवतरित करते हैं।
३- लोहार - जो कि मन्दिर में पूजा के लिये लकड़ियों का प्रबन्ध इत्यादि करते हैं।
४- कुंवर - कुंवर परिवार के लोग मन्दिर का भण्डारगृह संभालते हैं।
५- बिष्ट - इस परिवार के लोग माता के मन्दिर में आने वाले गेहूं को मां नन्दा के घराट (पनचक्की) में पीसते हैं। इन सबके वशंज आज भी निस्वार्थ भाव से सेवा कर रहे हैं।
६ - ब्राह्मण भी गड़िया अपने साथ लाये हैं वे आज भी पूजा करवाने में अपनी अहम भूमिका निभाते हैं।
मन्दिर तक पहुंचने के लिये हरिद्वार/दिल्ली से आने वाले यात्रियों को हल्द्वानी से भीमताल, अल्मोड़ा, ताकुला होते हुये बागेश्वर आना पड़ता है या गढ़वाल से आने वाले यात्री ग्वालदम - गरूड़ होते हुये बागेश्वर पहुचते हैं। बागेश्वर से मुख्य बाजार कपकोट होते हुये ७ किलोमीटर का सफर तय करके पोथिंग ग्राम स्थित मन्दिर तक पहुंचा जा सकता है। बागेश्वर से कपकोट तक उत्तराखण्ड परिवहन निगम की बस द्वारा पहुंचा जाता है। कपकोट बाजार से मन्दिर तक के लिये स्थानीय टैक्सी सेवा चलती रहती है। हालांकि मन्दिर परिसर में ही यात्रिओं हेतु धर्मशाला उपलब्ध है लेकिन भोजन-जलपान आदि की व्यवस्था न होने के कारण यात्रियों को रात्रिविश्राम हेतु कपकोट बाजार स्थित होटल/लाज तथा रेस्टोरेन्ट्स पर निर्भर रहना पड़ता है।
मन्दिर के आसपास का वातावरण बहुत ही निर्मल, शांत तथा मनोरम है। आसपास स्थित सिलंग के वृक्षों के फूलों की खुशबू और हरियाली यहां यात्रियों का मन मोह लेती है। यहाँ पर आकर भक्तजन सुकून का अनुभव करते हैं और हर वर्ष यहाँ माँ के दरबार में आकर माँ के दर्शन करते हैं। यहाँ की महिमा, भव्यता और लोगों की माँ के प्रति आस्था को देखते हुए इस क्षेत्र को पर्यटन से जोड़ने की कोशिश की जा रही है। यह स्थल सड़क मार्ग से अच्छी तरह जुडा हुआ है। मंदिर में अनेक धर्मशालाएं बनी हुयी हैं और यहाँ विश्राम करने की अच्छी व्यवस्था है। वैसे तो मन्दिर श्रद्धालुओं हेतु वर्ष भर खुला रहता है लेकिन मन्दिर की वास्तविक भव्यता और छटा मुख्य वार्षिक पूजा के समय सितंबर माह में होती है।
माँ के दर्शनार्थ एक बार पोथिंग आईयेगा जरुर। जय पोथिंग ग्रामवासी माँ नन्दा भगवती की ॥
जानकारी तथा फोटोगैलरी साभार : विनोद सिंह गढ़िया