श्रीनगर में यह मन्दिर अत्यन्त प्रसिद्ध माना जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार मान्यता है कि ब्रह्महत्या के भय से भागते हुये भगवान शिव ने इस स्थान पर नागों अर्थात सर्पों को छुपा दिया था। जिस गली में यह मन्दिर स्थित है उसे स्...
सीता और लक्ष्मणजी सितोन्स्यूं क्षेत्र की जनता के प्रमुख अराध्य देव हैं। देवल गांव में शेषावतार लक्ष्मण जी का एक अति प्राचीन मन्दिर है। इसके चारों और छोटे बड़े ११ प्राचीन मन्दिर और हैं। इन बारह मन्दिरों की संरचना और उनमें स्...
सरस्वती शिशु मन्दिर बौराड़ी नई टिहरी के पीछे स्थित है लक्ष्मी-नारायण मन्दिर। पुरानी टिहरी नगर में अन्य मन्दिरों की भांति लक्ष्मी-नारायण मन्दिर भी राजा के अधीनस्थ था। टिहरी बांध परियोजना के कारण जब नगर का विस्थापन होने...
पौड़ी गढ़वाल के बिलखेत, सांगुड़ा स्थित मां भुवनेश्वरी सिद्धपीठ पहुंचने के लिये राष्ट्रीय राजमार्ग ११९ पर कोटद्वार-पौड़ी के मध्य कोटद्वार से लगभग ५४ कि०मी० तथा पौड़ी से ५२ कि०मी० की दूरी पर स्थित एक छोटे से कस्बे सतपुली तक पहुंच...
पालीटेक्निक कालेज श्रीनगर एवं एस० एस० बी० के मध्य में गंगातट के केदारघाट के ऊपर स्थित शंकरमठ श्रीनगर का प्राचीन मन्दिर है। उत्तराखण्ड शैली में बना हुआ यह मन्दिर बहुत आकर्षक है। हालांकि शंकरमठ नाम से इस मन्दिर मठ के शैव होन...
कटकेश्वर महादेव (घसिया महादेव) श्रीनगर से रूद्रप्रयाग जाने वाले मार्ग पर श्रीनगर से लगभग एक किलोमीटर की दूरी पर मुख्य मार्ग पर स्थित है "कटकेश्वर महादेव"। सड़के दायें दक्षिण दिशा में स्थित इस मन्दिर का निर्...
शीतलामाता को राजस्थान में जगतरानी के नाम से जाना जाता है। स्थानीय नागरिकों में मन्दिर का बहुत महातम्य है। कहा जाता है कि भक्तों की मनोकामना को माता शीतला अवश्य पूरा करती है। कहा जाता है कि शंकराचार्य को यहीं पर हैजे की अत्...
ऋषिकेश लक्ष्मणझूला से लगभग २३ किलोमीटर यमकेश्वर मार्ग पर गरूड़चट्टी से कुछ आगे चलकर पीपलकोटी (नीलकण्ठ डाईवर्जन) के पास बायीं तरफ स्थित पर्वत के शिखर पर एक भव्य मन्दिर के दर्शन होते हैं, यह मन्दिर मां बालकुमारी के नाम स...
देवभूमि उत्तराखण्ड के प्रवेशद्वार कोटद्वार में लालढांग मार्ग, देवी रोड़ पर स्थित है माता सुखरौदेवी का मन्दिर। पौराणिक जनश्रुतियों के अनुसार जहां यह सुखरौदेवी मन्दिर स्थित है उस स्थान पर द्वापर युग में महाराजा दुश्यन्त द्वार...