Thursday November 21, 2024
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हरिद्वार

हरिद्वार जनपद उत्तराखण्ड के १३ जनपदों में से एक है हरिद्वार नगर इस जनपद का मुख्यालाय है । हिन्दी में हरिद्वार का अर्थ होता है "हरि अर्थात ईश्वर का द्वार"। हरिद्वार हिन्दुओं के सात पवित्रतम मोक्षदायिनी स्थानों में से एक है । हरिद्वार का उत्तराखण्ड ही नहीं अपितु  भारत वर्ष में अपना एक अलग ही आध्यात्मिक एवं पौराणिक महत्व है । उत्तराखण्ड के पश्चिमोत्तर प्रान्त में अक्षांश २९.९६ डिग्री उत्तर एवं देशान्तर ७८.१६ डिग्री पूर्व में बसा जनपद हरिद्वार लगभग २३६० वर्ग किमी क्षेत्र में फैला हुआ है तथा समुद्रतल से २४९.७ मी की ऊंचाई पर उत्तर व उत्तर- पूर्व में शिवालिक पहाडियों तथा दक्षिण में गंगा नदी के बीच स्थित है । जहां एक ओर हरिद्वार जनपद के पूर्व में पौड़ी गढ़वाल, उत्तर एवं पूर्व में देहरादून जनपद बसे हैं वहीं दूसरी ओर इसकी सीमायें दक्षिण-पूर्व में उत्तरप्रदेश के बिजनौर, दक्षिण-पश्चिम में मुजफ्फरनगर एवं पश्चिम में सहारनपुर जनपद से लगी हुई हैं। इस जनपद का जनसंख्या घनत्व ८१७ व्यक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर, साक्षरता दर ७४.६२% (पुरुष ८२.२६%, स्त्री ६५.९६%) तथा लिंगानुपात १०००:८७९ है। प्रशासनिक दृष्टि से जनपद हरिद्वार तीन तहसीलों (हरिद्वार, रुड़की, लक्सर) तथा ६ सामुदायिक विकासखण्डों (बहादराबाद, भगवानपुर, खानपुर, लक्सर, नारसन कलां, रुड़की) में विभाजित है। हरिद्वार जिला सहारनपुर कमिश्नरी डिविजनल के अन्तर्गत २८ दिसंबर १९८८ को अस्तित्व में आया था। २४ सितंबर १९९८ के दिन उत्तर प्रदेश विधानसभा ने "उत्तर प्रदेश पुनर्गठन विधेयक १९९८" पारित किया, अंतत: भारतीय संसद ने भी "भारतीय संघीय विधान - उत्तर प्रदेश पुनर्गठन अधिनियम २०००" पारित किया, और इस प्रकार ९ नवंबर २००० के दिन हरिद्वार भारतीय गणराज्य के २७वें नवगठित राज्य उत्तराखण्ड का भाग बन गया। वर्ष २०११ के आंकड़ों के अनुसार यह उत्तराखण्ड का सबसे अधिक जनसंख्या वाला जनपद है।

गौमुख (गंगोत्री हिमनद) से निकलने के उपरान्त २५४ किलोमीटर की यात्रा करके मोक्षदायिनी गंगा हरिद्वार से ही मैदानी क्षेत्रों में प्रथम प्रवेश करती है अतैव हरिद्वार को गंगाद्वार के नाम से भी जाना जाता है। पौराणिक संदर्भों में समुद्र मंथन मे उपरान्त अमृतकलश से कुछ बूंदें गिर गई थी । पृथ्वी पर यह बूंदें चार स्थानों पर गिरी थीं उज्जैन, हरिद्वार, नासिक और प्रयाग, ये वही स्थान हैं जहां आज भी कुम्भ मेला लगता है। पूरी दुनिया से करोडों तीर्थयात्री, भक्तजन, और पर्यटक यहां इस समारोह को मनाने के लिए एकत्रित होते हैं और गंगा नदी के तट पर शास्त्र विधि से स्नान इत्यादि करते हैं। हरिद्वार उन स्थानों में से एक है जहां संपूर्ण भारतीय संस्कृति और सभ्यता के हर रूप के दर्शन किये जा सकते हैं। इसका उल्लेख पौराणिक कथाओं में कपिलस्थान, गंगाद्वार और मायापुरी के नाम से भी किया गया है। यह चार धाम यात्रा के लिए प्रवेश द्वार भी है (उत्तराखंड के चार धाम है:- बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री), इसलिए भगवान शिव के अनुयायी और भगवान विष्णु के अनुयायी इसे क्रमशः हरद्वार और हरिद्वार के नाम से पुकारते है। हर यानी शिव और हरि यानी विष्णु। कपिल ऋषि का आश्रम भी यहाँ स्थित था, जिससे इसे इसका प्राचीन नाम कपिल या कपिल्स्थान मिला। पौराणिक कथाओं के अनुसार भगीरथ, जो सूर्यवंशी राजा सगर के प्रपौत्र (श्रीराम के एक पूर्वज) थे, गंगाजी को सतयुग में वर्षों की तपस्या के पश्चात् अपने ६०,००० पूर्वजों के उद्धार और कपिल ऋषि के श्राप से मुक्त करने के लिए के लिए पृथ्वी पर लाये। ये एक ऐसी परंपरा है जिसे करोडों हिन्दू आज भी निभाते है, जो अपने पूर्वजों के उद्धार की आशा में उनकी चिता की राख लाते हैं और गंगाजी में विसर्जित कर देते हैं। कहा जाता है की भगवान विष्णु ने एक पत्थर पर अपने पग-चिन्ह छोड़े है जो हर की पौडी में एक उपरी दीवार पर स्थापित है, जहां हर समय पवित्र गंगाजी इन्हें छूती रहतीं हैं। गहन धार्मिक महत्व के कारण हरिद्वार में वर्ष भर में कई धार्मिक त्यौहार आयोजित होते हैं जिनमें प्रमुख हैं कांवड़ मेला, सोमवती अमावस्या मेला, गंगा दशहरा, गुघल मेला जिसमें लगभग २०-२५ लाख लोग भाग लेते हैं। इस के अतिरिक्त जब बृहस्पति ग्रह कुम्भ राशिः में प्रवेश करता है तब यहाँ कुंभ मेला भी आयोजित होता है जो कि हर बार बारह वर्षों में मनाया जाता है । कुंभ मेले के पहले लिखित साक्ष्य चीनी यात्री, हुआन त्सैंग (६०२ - ६६४ ई.) के लेखों में मिलते हैं जो ६२९ ई. में भारत की यात्रा पर आया था।


गंगा नदी इस जनपद की मुख्य नदी है इसके अलावा रानीपुर राव, पथरी राव, रावी राव, हर्नोई राव, बेगम नदी इसकी सहायक नदियां हैं। जिले का अधिकांश भाग जंगलों से घिरा है व राजाजी राष्ट्रीय प्राणी उद्यान जिले की सीमा में ही आता है जो इसे वन्यजीवन व साहसिक कार्यों के प्रेमियों का आदर्श स्थान बनाता है।  राजाजी राष्ट्रीय प्राणी उद्यान में प्रवेश करने के सात मुख्य गेट है। रामगढ़ गेट व मोहंड गेट जो देहरादून से २५ किमी पर स्थित है जबकि मोतीचूर, रानीपुर और चीला गेट हरिद्वार से केवल ९ किमी की दूरी पर हैं ।  कुनाओ गेट ऋषिकेश से ६ किमी पर है । लालढ़ांग गेट कोट्द्वारा से २५ किमी की दूरी  पर है ।

आवागमन के मुख्य साधनों में उत्तराखण्ड परिवहन निगम की बसें हैं जो हरिद्वार जनपद को उत्तराखण्ड के अन्य जनपदों से तथा उत्तरप्रदेश, दिल्ली, पंजाब, हिमाचल व हरियाणा से जोड़ती हैं। यहां से प्राईवेट टैक्सी उत्तराखण्ड व भारतवर्ष के सभी स्थानों के लिये हर समय आसानी से उपलब्ध हो जाती हैं। स्थानीय परिवहन में यहां टैम्पो तथा आटोरिक्शा चलते हैं। हरिद्वार रेलवे स्टेशन एक्सप्रेस गाड़ियों से दिल्ली और उत्तर भारत के अन्य भागों के साथ जुड़ा हुआ है। रेलवे स्टेशन, इंटर स्टेट बस टर्मिनल (आईएसबीटी) और मुख्य टैक्सी स्टैंड सभी आमने सामने ही स्थित हैं । हरिद्वार जनपद दिल्ली से विमान सेवा से भी जुड़ा हुआ है। एअरपोर्ट जौलीग्रांट हरिद्वार से लगभग ३० किमी० की दूरी पर स्थित है जो कि देहरादून, ऋषिकेश, हरिद्वार तीनों स्थानों के केन्द्र पर स्थित है।

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