सत्येश्वर महादेव का मन्दिर सेवन-डी, बौराड़ी नई टिहरी की ढाल पर स्थित है, मन्दिर परिसर बहुत ही अच्छे और तीन तरफ से खुले एक स्थान पर है जो संभवतया नई टिहरी के सभी मुख्य स्थानों से साफ दृष्टिगोचर होता है। मन्दिर के पुजारी महन्त श्री गोपाल गिरी के अनुसार सत्येश्वर महादेव का मन्दिर पुरानी टिहरी नगर के सत्येश्वर मुहल्ला, सुमन चौक में स्थित था जो कि लगभग २०० साल पुराना था। टिहरी बांध परियोजना के कारण जब नगर का विस्थापन होने लगा तो मन्दिरों को भी विस्थापित किया जाने लगा। इस क्रम में नगर के सभी मन्दिरों की नई टिहरी नगर में स्थापना की जाने लगी। मन्दिर की स्थापना वर्ष २००० में की गई थी, इस कारण नई टिहरी नगर की तरह ही आधुनिक सत्येश्वर महादेव मन्दिर भी ज्यादा पुराना नहीं है। गोपाल गिरि जी के अनुसार वास्तविक मन्दिर की स्थापना (पुरानी टिहरी) में कई वर्ष पहले हुई थी कहा जाता था कि किसी चरवाहे की गाय जंगल की कुछ झाड़ियों में रोज स्वयं दूध गिरा कर आया करती थी। चरवाहे ने जब उस स्थान पर जाकर देखा तो पाया कि झाड़ियों में एक शिवलिंग था जिस पर गाय रोज दूध गिरा देती थी। चरवाहे ने इस घटना के बारे में राजा को सूचित किया और राजा ने कुछ बुद्धिजीवियों की सलाह पर वहां एक छोटे से मन्दिर का निर्माण कर दिया और महन्त श्री गोपाल गिरि जी के किसी एक पूर्वज को मन्दिर का पुजारी नियुक्त कर दिया। महन्त श्री गोपाल गिरि जी के अनुसार जब गोरखाओं ने उत्तराखण्ड पर आक्रमण किया तो उन्होने यहां के कई मन्दिरों और धार्मिक स्थलों को तहस-नहस करना शुरू कर दिया। इसी क्रम में जब वे इस मन्दिर तक पहुंचे तो इस मन्दिर को तोड़ा और शिवलिंग को उखाड़ फेंकने का प्रयास किया, लेकिन बहुत खोदने के बाद भी शिवलिंग को पूरा नहीं निकाल पाये। अन्तत: उन्होने शिवलिंग तोड़ेने का प्रयास किया कहा जाता है कि शिवलिंग पर प्रहार करते ही शिवलिंग का एक हिस्सा टूटा और टिहरी से कुछ दूर देवलसारी में गिरा जहां आज देवलसारी मन्दिर का शिवलिंग स्थापित है।
कहा जाता है कि तभी से इस मन्दिर का नाम सत्येश्वर महादेव पड़ा। सत्येश्वर मन्दिर परिसर में तीन छोटे दो मध्यम और एक मुख्य मन्दिर है। छोटे वाले मन्दिरों में से एक भैरवबाबा का है। तथा बाकी के दो मन्दिरों में कुछ स्थापना संबधी मतभेद के कारण संभवतया किसी मूर्ति की स्थापना नहीं हो पायी होगी अत: वो अभी तक खाली पड़े है। बायीं तरफ जो दो मध्यम आकार के बड़े मन्दिर हैं उनमें से एक में भगवान शिव तथा माता पार्वती की वरद हस्त मुद्रा में मूर्तियां स्थापित हैं, तथा दूसरे में मां त्रिपुरी सुन्दरी दुर्गा, विघ्नहर्ता गणेश और मां काली की भव्य मूर्तियां स्थापित हैं। इसके अलावा मुख्य मन्दिर में एक विशाल शिवलिंग और उसके पीछे माता लक्ष्मी और विघ्न हर्ता गणेश जी की मूर्तियां स्थापित हैं।
महन्त श्री गोपाल गिरि जी के अनुसार यह मन्दिर पुरानी टिहरी में राजा के अधीनस्थ था। राजा की तरफ से मन्दिर के पुजारी का १५/- (पन्द्रह रुपये) मासिक वेतन, और मन्दिर के पूजा-पाठ तथा अन्य व्यवस्था-प्रबन्धन हेतु १००००/- (दस हजार रुपये) वार्षिक बन्धान निर्धारित था लेकिन वर्ष १९९८ से अब तक वेतन और बन्धान राशि दोनों में से कुछ भी नहीं दिया गया। मन्दिर की व्यवस्था प्रबन्धन हेतु किसी समिति का गठन नहीं किया गया है। वे स्वयं मन्दिर के चढ़ावे से ही व्यवस्था-प्रबन्धन देखते हैं। मन्दिर परिसर में ही पुजारी अवास तथा एक दो कमरों की धर्मशाला स्थापित है।
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