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नन्दा देवी राजजात के पड़ाव - चौथा पड़ाव - कांसुवा से सेम

Vinay Kumar DograAugust 21, 2014 | पर्व तथा परम्परा

नन्दा देवी राजजात के पड़ाव - चौथा पड़ाव - कांसुवा से सेम
आज २१-अगस्त-२०१४ कांसुवा से यात्रा जब सेम को रवाना होती है तो कांसुवा गाँव की सीमा पर स्थित महादेव घाट है। यहां पर महादेव मन्दिर है। कांसुवा गाँव के सभी लोग यहाँ तक नंदा को विदा करने आते हैं। यहाँ पर नन्दादेवी की पवित्र राज छंतोली कोटी के ड्यॅूडी ब्राह्मणों को सौंप दी जाती हैं। मार्ग में चांदपुर गढ़ी पड़ती है। यहां पर गढ़वाल नरेश के राजपरिवार की ओर से भगवती नंदा की पूजा अर्चना की जाती है।
गढ़वाल से कत्यूरी राजाओं के अल्मोड़ा चले जाने के बाद कई छोटे गढ़पतियों का उदय हुआ, जिनमें पंवार वंश सबसे अधिक शक्तिशाली था जिसने चांदपुर गढ़ी (किला) से शासन किया। कनक पाल को इस वंश का संस्थापक माना जाता है। उसने चांदपुर भानु प्रताप की पुत्री से विवाह किया और स्वयं यहां का गढ़पती बन गया। चांदपुर गढ़ी को गढ़वाल राज्य की प्रारम्भिक राजधानी के रूप में जाना जाता है। भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण को इस स्थल पर पहाड़ी के शिखर पर स्थित मुख्य परिसर के चारों ओर पहाड़ की ढालान पर आवासीय संरचनाओं के अवशेष प्राप्त हुये हैं, जो कि कालांतर में प्राकृतिक आपदा अथवा परित्याग किये जाने के कारण खण्डहर में तब्दील हो गये। इनकी निर्माण शैली में पत्थर के प्रस्तर खण्डों को छोटे पत्थर के टुकड़ों के साथ मिट्टी के गारे से जोड़ा गया है जो भवनों को भूकम्प रोधी रखने में मददगार होते हैं, जबकि परवर्ती चरणों के निर्माण में गारे के रूप में चूने का प्रयोग भी पाया गया है। दीवारें मोटे पत्थरों से बनी है तथा कई में आलाएं या काटकर दिया रखने की जगह बनी है। फर्श पर कुछ चक्राकार छिद्र हैं जो संभवत: ओखलियों के अवशेष हो सकते हैं। एटकिंसन के अनुसार किले का क्षेत्र 1.5 एकड़ में है। उत्खनन में गोलाकार कुंआ, मिट्टी के पात्रों के टुकड़े, धातु के बर्तन और लोहे के अस्त्र-शस्त्र जो लगभग 14वीं-15वीं शताब्दी के हैं, प्राप्त हुये हैं। एटकिंसन यह भी बताता है कि किले से 500 फीट नीचे झरने पर उतरने के लिये जमीन के नीचे एक रास्ता है। इसी रास्ते से दैनिक उपयोग के लिये पानी लाया जाता होगा। एटकिंसन बताता है कि पत्थरों से कटे विशाल टुकड़ों का इस्तेमाल किले की दीवारों के निर्माण में हुआ जिसे कुछ दूर दूध-की-टोली की खुले खानों से निकाला गया होगा। कहा जाता है कि इन पत्थरों को पहाड़ी पर ले जाने के लिये दो विशाल बकरों का इस्तेमाल किया गया जो शिखर पर पहुंचकर मर गये।
नन्दाराजजात में यहाँ पर गढ़वाल और कुमांऊ क्षेत्र के यात्री बड़ी संख्या में पहुंचते हैं। उज्जवलपुर व तोप में पूजा पाकर यात्रा रात्रि विश्राम के लिये सेम गाँव में पहुँचती है।

लेख साभार : श्री नन्दकिशोर हटवाल



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