सीता और लक्ष्मणजी सितोन्स्यूं क्षेत्र की जनता के प्रमुख अराध्य देव हैं। देवल गांव में शेषावतार लक्ष्मण जी का एक अति प्राचीन मन्दिर है। इसके चारों और छोटे बड़े ११ प्राचीन मन्दिर और हैं। इन बारह मन्दिरों की संरचना और उनमें स्थापित मूर्तियां अत्यन्त सुन्दर और कलापूर्ण हैं । लक्ष्मण जी के मन्दिर के सम्मुख एक प्राचीन नौबतखाना है। कुछ एक अति प्राचीन मन्दिरों के अतिरिक्त इस जिलें में किसी भी मन्दिर में नौबतखाना नहीं है। यह मन्दिर की महत्ता और प्राचीनता का सूचक है। क्षेत्रीय पुरातत्व अधिकारी डा० बुद्धिप्रकाश बडोनी के अनुसार काल-क्रम की दृष्टि से इस मन्दिर को दो वर्गों में विभक्त किया जा सकता है प्रथम वर्ग के अनुसार लक्ष्मण व शिवमन्दिर हैं। इन मन्दिरों को १८७९ वीं श० ई० में निर्मित किया मान जाता है। इन मन्दिरों की वास्तुयोजना अत्यन्त सरल है। लक्ष्मण मन्दिर के गर्भगृह में पद्म. चक्र और शंख धारण किये हुऐ विष्णु, लक्ष्मी, नारायण, ब्रह्मा, गणेशा तथा महिष-मर्दिनी दुर्गा की मध्यकालीन मूर्तियां स्थापित हैं। दूसरे वर्ग के मन्दिर शैली के अनुसार १२वीं-१३वीं श० ई० में निर्मित माने जाते हैं। अधिकांश मन्दिरों में गर्भगृह तथा अर्द्धमण्डप का प्राविधान है। सभी मन्दिरों में नागर शैली के अन्तर्गत त्रिरथरेखा शिखर निर्मित पर निर्मित है जो कर्णभाग पर भूमि आमलकों से सुसज्जित है। मुख्यमन्दिर मे लक्ष्मण जी की शयनमुद्रा में अतिप्राचीन मूर्ति मिलती है। कहा जाता है कि श्रीराम से विदा लेकर जब लक्ष्मणजी माता सीता को सितोन्स्यूं वाल्मीकि आश्रम में छोड़ने लगे तो लक्ष्मणजी मूर्छित हो गये थे, शेषाशयी लक्ष्मणजी की यह मूर्ति उनकी इसी अवस्था की परिचायक है। देवल के प्राचीन कुण्ड पर भी लक्ष्मणजी की वैसी ही मूर्ति स्थापित है। मन्दिर में आज भी दोनों समय पूजा होती है नौबत बजती है तथा नैवेद्य बंटता है।
किसी नाम के आगे ईश्वर लगाकर उसको किसी देवी-देवता की उपाधि से विभूषित कर देना हिन्दू संस्कृति की पुरानी परंपरा है। रामायण काल के मूक साक्षी सितोन्स्यूं क्षेत्र में जहां मनसार का मेला लगता है, से एक फर्लांग की दूरी पर तीन नद...
पौड़ी शहर का एक मात्र हनुमान मन्दिर मुख्य बस स्टेशन से लगभग ४ किलोमीटर की दूरी पर कण्डोलिया-बुवाखाल मार्ग पर स्थित है। यहां से हिमालय की विस्तार पर्वत श्रृखंला का दर्शन पर्यटक एवं श्रद्धालुओं के लिये किसी विस्मय से कम नहीं ...
आदेश्वर महादेव मन्दिर "रानीगढ़" पहुंचने के लिये पौड़ी मुख्यालय से कण्डोलिया होते हुये पौड़ी-कांसखेत-सतपुली मोटर मार्ग पर लगभग १८ कि०मी० का सफर तय करके अदवानी नामक एक छोटे से गांव तक आना पड़ता है। यह पूरा क्षेत्र गढ़वा...
देवलगढ़ का उत्तराखण्ड के इतिहास में अपना एक अलग ही महत्व है। प्राचीन समय में उत्तराखण्ड ५२ छोटे-छोटे सूबों में बंटा था जिन्हें गढ़ के नाम से जाना जाता था और इन्ही ने नाम पर देवभूमि का यह भूभाग गढ़वाल कहलाया। १४वीं शताब्दी में...
पौड़ी बस स्टेशन से लगभग तीन किलोमीटर की दूरी पर कण्डोलिया-बुवाखाल मार्ग पर स्थित है घने जंगल के मध्य स्थित है "नागदेव मंदिर"। प्राकृतिक सौन्दर्य से परिपूर्ण घने बांज, बुरांश तथा गगनचुम्बी देवदार, चीड़ के वृक्षों के...
बस स्टेशन पौड़ी से कुछ ही दूरी पर स्थित "लक्ष्मीनारायण मन्दिर" की स्थापना १४-फरवरी-१९१२ संक्रान्ति पर्व पर की गई थी। इस मन्दिर में स्थापित लक्ष्मी और नाराय़ण की मूर्ति सन् १९१२ पूर्व विरह गंगा की बाढ़ आने के उ...