पौड़ी शहर से ४६ किमी दूर कण्डारस्यूं पट्टी के पैठाणी ग्राम के अन्तर्गत पश्चिमी नयार के तट पर स्थित शिव मन्दिर संपूर्ण गढ़वाल हिमालय में अपनी अनुपम वास्तु संरचना के लिये प्रसिद्ध है। स्थानीय लोग शिव मन्दिर पैठाणी को "राहू मन्दिर" के नाम से जानते हैं। लेकिन मन्दिर के गर्भगृह में स्थापित प्राचीन शिवलिंग तथा मन्दिर की शुकनासिका पर शिव के तीनों मुखों का अंकन इस मंदिर के शिव मन्दिर होने के प्रबल साक्ष्य प्रस्तुत करते हैं। यहां पर राहू से संबन्धित किसी भी पुरावशेष की प्राप्ति नहीं हुई है।
पैठानी के स्थानीय नागरिक श्री शम्भू प्रसाद नौडियाल ग्राम कनाकोट बताते हैं कि शंकराचार्य द्वारा स्थापित इस मन्दिर के बारे में केदारखण्ड में वर्णन आज भी लोगों के लिये जिज्ञासा का केन्द्र है। लोकमान्यता है कि राष्ट्रकूट पर्वत के पूर्वी नयार एवं पश्चिमी नयार के संगम स्थल पर राहू ने शिवजी की तपस्या की थी, इसीलिये राहू की तपस्थली होने के कारण इसे लोग राहू मन्दिर के नाम से भी जानते हैं। राष्ट्रकूट पर्वत के नाम पर ही यह क्षेत्र "राठ" कहलाया। केदारखण्ड के कर्मकाण्ड में वर्णित "ऊं भूर्भुव: स्व: राठीनापुरोद्धव पैठीनसिग्रोत्र राहो इहागेच्छेति" के अनुसार कई विद्वान इसे राहु मन्दिर होने का प्रबल साक्ष्य मानते हैं। यह भी मान्यता है कि इसी पीठ पर पूजा करने से पुत्र कि प्राप्ति होती है। सावन माह के प्रत्येक सोमवार को महिलायें बेलपत्री चढ़ाकर इस मन्दिर में पूजा करती हैं क्षेत्रीय पुरातत्व अधिकारी डा० बुद्धिप्रकाश बडोनी के अनुसार पैठाणी मन्दिर के शिखर शीर्ष पर विशाल आमलसारिका स्थापित है। अन्तराल के शीर्ष पर निर्मित शुकनासिका के अग्रभाग पर त्रिमूर्ति का अंकन और शीर्ष पर अधर्म पर धर्म की विजय के प्रतीक के रूप में गज, सिंह की स्थापना की गई है। मुख्य मन्दिर के चारों कोनों पर स्थित मन्दिरों का शिखर क्षितिज पट्टियों से सज्जित पीढ़ा शैली के अनुरूप निर्मित है।
शिवालय के मण्डप में वीणाधर शिव की आकर्षक प्रतिमा के साथ त्रिमुखी हरिहर की एक दुर्लभ प्रतिमा भी स्थापित है। प्रतिमा के मध्य में हरिहर का समन्वित मुख सौम्य है जबकि दांयी ओर का मुख अघोर तथा दांयी ओर बराह का मुख अंकन किया गया है। इस प्रतिमा की पहचान पुरातत्वविद महेश्वर महावराह की प्रतिमा से करते है। अपने आश्चर्यजनक लक्षणों के कारण यह प्रतिमा गढ़वाल हिमालय ही नहीं अपितु सम्पूर्ण भारतवर्ष की दुर्लभ प्रतिमाओं में से एक है। वास्तुशैली एवं प्रतिमाओं की शैली के आधार पर पैठाणी का यह शिव मन्दिर तथा प्रतिमायें ८-९वीं शताब्दी के निर्मित प्रतीत होते हैं। पैठाणी गांव के इस शिवमन्दिर को देखने के लिये दूर दूर से पर्यटक आते रहते हैं। इस मन्दिर की पौराणिकता के साथ कोई छेड़-छाड़ नहीं की गई है। यह मन्दिर वास्तुकला का अद्भुत नमूना है। नदी के समीप बहने वाली पश्चिमी नयार नदी के पानी द्वारा लाई गई रेत "सोने की बालू" के नाम से जानी जाती है जिसे "एलुवियल सेन्ड" कहते हैं जो कि आज भी नदी के किनारे हल्के लाल रंग में देखी जा सकती है।
साभार: श्री वीरेन्द्र खंकरियाल पौड़ी, [धार्मिक पर्यटन - पौड़ी और आसपास]
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