गढ़वाल के प्राचीन शिवमदिरों में ताड़केश्चर महादेव का अति महत्व है। पौड़ी जनपद के जयहरीखाल विकासखण्ड के अन्तर्गत लैन्सडौन डेरियाखाल - रिखणीखाल मार्ग पर स्थित चखुलाखाल नामक गांव से लगभग ४ किमी० की दूरी पर समुद्रतल से लगभग ६००० फीट की ऊंचाई पर पर्वत श्रृखंलाओं के मध्य एक अत्यन्त रमणीक, शांत एवं पवित्र स्थान पर अवस्थित है। सघन गगनचुम्बी पवित्र देवदार के ५किमी० फैले जंगल के मध्य में स्थित यह ताड़केश्वर धाम अध्यात्मिक चेतना, धर्मपरायणता व सहिष्णुता का उत्कृष्ट आस्था केन्द्र है। ग्वाड़झिण्डी तथा ग्वारजलोटा पर्वत श्रृखंला की सौन्दर्यमयी आभा यहां से देखते ही बनती है। महाकवि कालिदास ने अपनी रचना रघुवंश खण्डकाव्य के द्वितीय चरण में श्री ताड़केश्वर धाम का बड़ा मनमोहक वर्णन किया है। हिन्दू धर्मग्रन्थ रामायण में ताड़केश्वर धाम का वर्णन एक दिव्य एवमं पावन आश्रम के रूप में किया है। कहा जात है कि ताड़कासुर का वध करने के बाद भगवान शिव ने यहां विश्राम किया था, विश्राम के समय उन्हें सूर्य की किरणों की गर्मी से बचाने के लिये मां पार्वती ने देवदार के सात वृक्ष लगाये थे। आज भी ये सातों वृक्ष मन्दिर के अहाते में हैं स्कन्दपुराण के केदारखण्ड में विषगंगा एवं मधुगंगा नामक दो पावन गंगाओं का उल्लेख है। इन दोनों महत्वपूर्ण उत्तरवाहिनी नदियों का उदगम स्थल ताड़केश्वर धाम ही है। श्रद्धालु शिवभक्त एवं स्थानीय भक्तगण हजारों की संख्या में प्रतिवर्ष यहां दर्शनार्थ आते हैं। सन १९४६ में माहेश्वरी दास बाबा द्वारा स्थापित "माहेश्वरी दास मेडिटेशन आश्रम" व १९५५ में स्थापित स्वामीराम साधना मन्दिर यहीं मन्दिर परिसर के समीप ही स्थित है जहां प्रतिवर्ष सैकड़ों की संख्या में श्रद्धालु ध्यान, योग साधना, पूजा पाठ अनुष्ठान व कर्मकाण्ड के अध्ययन हेतु आते हैं
भगवान शिव के १५ अवतरों में भैरवगढ़ी का नाम भी आता है। और इन्ही कालभैरव का सुप्रसिद्ध धाम भैरवगढ़ी है। लैन्सडाऊन से लगभग १७ किलोमीटर दूर राजखील गांव की पहाड़ी पर यह देवस्थल स्थित है। इस स्थल पर कालनाथ भैरव की नियमित पूजा होती ...