नन्दा देवी राजजात के पड़ाव - नवाँ पड़ाव - चेपडि़यूँ से नन्दकेशरी
Vinay Kumar Dogra । August 25, 2014 | पर्व तथा परम्परा |
आज दिनांक २६-अगस्त-२०१४ को श्री नन्दादेवी राजजात चेपडि़यूँ से नन्दकेशरी के लिये प्रस्थान करेगी। श्री नन्दादेवी राजजात 2000 में पहली बार नन्दकेशरी में पड़ाव रखा गया था। नन्दकेशरी में कुरूड़ की नंदाडोली के साथ निकलने वाली यात्रा एवं नौटी से आने वाली यात्रा का मिलन होता है। बधाण की राजराजेश्वरी नन्दादेवी की डोली कुरूड़ से चलती है तथा विभिन्न पड़ावों से होते हुए राजजात में शामिल होती है। अपने क्षेत्र में अपनी बहिन की अगुवाई करती है। यहाँ पर कुमाऊं से आने वाली यात्रा का भी मिलन होता है। 2000 की राजजात में अल्मोड़ा की नन्दा नन्दकेशरी में शामिल हुई थी तथा डंगोली की भ्रामरी देवी की कटार एवं छंतोली शामिल होती है। नन्दकेशरी में शिव एवं नन्दा का अलग-अलग मन्दिर है। भैरव का प्राचीन मन्दिर है। अष्टकाल भैरव शिवलिंग के रूप में आठ जगह पर है। जिनमें से कुछ ध्वस्त है। यहां पर लाटू देवता की शिला है। इस स्थान का नाम नंदकेशरी पड़ने के पीछे एक किंवदन्ती प्रचलित है कि एक बार नन्दा देवी कैलाश की ओर जा रही थी तो उसके केश (बाल) सुरही के पेड़ पर अटक गए तो वह पेड़ में छिप गई और उसने शिव को याद किया। शिव प्रकट हुए लेकिन कुछ नहीं कर पाए। तब शिव ने भैरव को याद किया और भैरव ने प्रकट होकर दैत्य को मारा। नन्दा के केश उलझने के कारण इस स्थान का नाम नन्दकेशरी पड़ा । नन्दकेशरी में नन्दा अष्टभुजा रूप में स्थित है।
लेख साभार : श्री नन्दकिशोर हटवाल
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