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नन्दा देवी राजजात के पड़ाव - सातवाँ पड़ाव - भगोती से कुलसारी

Vinay Kumar DograAugust 25, 2014 | पर्व तथा परम्परा

क्यौर गधेरे, नारायणबगड़, पन्ती, बैनोली, मींग गधेरा, हरमनी, नगर कोटियाला होते हुए यात्रा सातवें पड़ाव कुलसारी पहुंचती है। मान्यता है कि क्यौर गधेरा पार करने के बाद नंदा देवी का ससुराल क्षेत्र लग जाता है। कुलसारी को ससुराल क्षेत्र का पहला पड़ाव माना जाता है। यहां पर कालीरूप में नंदा की पूजा की जाती है। इसीलिए इस स्थान का नाम कुलसारी पड़ा। परम्परानुसार यहाँ पर राजजात को आमावस्या के दिन पहुँचना होता है। यहां पर काली का मन्दिर है तथा इसमें काली-यंत्र भूमिगत है। राजजात के अवसर पर ही आमावस्या की काल रात्रि को काली-यंत्र को भूमि से निकाल कर पूजे जाने का रिवाज है और फिर अगली यात्रा तक इसे भूमिगत कर दिया जाता है। यहाँ पर दक्षिण काली, त्रिमुखी शिव, लक्ष्मीनारायण, हनुमान, सूर्य भगवान के मन्दिर तथा बाहर में लक्ष्मी जी की चरण पादुका है। यहां पर कुलसारा ब्राह्मण पुजारी हैं। समीपवर्ती गाँव बसर में बागेश्वर महादेव का प्राचीन अधूरा मन्दिर है जिसमें प्राचीन पत्थरों की 12 मूर्तियां खण्डित हैं। आद्रा गाँव में केदारशिव, लाटू व उल्फा देवी तथा खंकरा शिवालय है। 

लेख साभार : श्री नन्दकिशोर हटवाल



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