शीतलामाता को राजस्थान में जगतरानी के नाम से जाना जाता है। स्थानीय नागरिकों में मन्दिर का बहुत महातम्य है। कहा जाता है कि भक्तों की मनोकामना को माता शीतला अवश्य पूरा करती है। कहा जाता है कि शंकराचार्य को यहीं पर हैजे की अत्यधिक असहाय अवस्था में अलकनन्दा नदी से जल लाती हुई एक बालिका द्वारा जल पिलाये जाने पर आरोग्य प्राप्त हुआ था और तभी उन्हे शक्तिबोध हुआ था। लोगों का मानना है कि शीतलामाता आरोग्य की देवी हैं। विशेष रूप से प्रतिवर्ष होली के पश्चात रोग व्याधित से मुक्ति तथा आरोग्य की कामना लेकर लोग माता के मन्दिर में पूजन के लिये आते हैं। पौड़ी-खाण्डा-करैंखाल से श्रीनगर आने वाले पैदल मार्ग पर यह मन्दिर उत्तमवाला (अपर भक्तियाना) में भैरवीधारा के दायें तरफ स्थित है। यह मन्दिर बहुत प्राचीन मन्दिर है परन्तु देवलगढ़ १८१२ ई० के गोरखा फरमान में दस हजार पैन्तीस रुपयों में जिन ६६ मन्दिर का जीर्णोद्धार हुआ था उनमें शीतला मन्दिर श्रीनगर का भी नाम है। इतिहासकार डा० शिव प्रसाद नैथानी के अनुसार शीतला माता का यह मन्दिर ग्रामीण शैली में बना हुआ है। परन्तु मन्दिर परिसर में पड़े विशाल प्रस्तरखण्डों एवं शिलापटलों को देखकर प्रतीत होता है कि यह मन्दिर विशाल कटवां पत्थरों का बना हुआ था। मन्दिर का गर्भगृह चौकोर बना हुआ है इसका बरामदा दोनों ओर से खुला हुआ है। गर्भगृह में अंगराग से पुती हुई मूर्तियां रखी हुई है। मन्दिर के बाहर रास्ते के किनारे खड़े दो विशाल काले लिंग स्वरूप पत्थरों की देवी के दूतों के रूप में पूजा अर्चना होती आई है। परंम्परा के अनुसार होलिकादहन के उपरान्त मातायें अपने बच्चों को साथ ले जाकर भक्ति तथा उत्साह के साथ शीतलामाता की पूजा कर उन पर देवी प्रसाद स्वरुप पीठे का टीका लगाती हैं। प्रत्येक सोमवार तथा शुक्रवार को मन्दिर में भक्तगणों का तांता लगा रहता है। नवरात्रों में कभी कभी यहां चण्डीपाठ भी होता है।
नवनाथ परम्परा में गोरखनाथ जी नौ वें नाथ जो कि गुरू मछिन्दरनाथ के शिष्य थे। गुरु गोरखनाथ ने हठयोग का प्रचार किया था और अनेक ग्रन्थों की रचना भी की थी। अवधारणा है कि गुरू गोरखनाथ की केवल दो ही स्थानों पर गुफायें बनाई गई है...
श्रीनगर में यह मन्दिर अत्यन्त प्रसिद्ध माना जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार मान्यता है कि ब्रह्महत्या के भय से भागते हुये भगवान शिव ने इस स्थान पर नागों अर्थात सर्पों को छुपा दिया था। जिस गली में यह मन्दिर स्थित है उसे स्...
गढ़वाल के पांच महातम्यशाली शिव सिद्धपीठों किलकिलेश्वर, क्यूंकालेश्वर, बिन्देश्वर, एकेश्वर, ताड़केश्वर में किलकिलेश्वर का प्रमुख स्थान है। श्रीनगर के ठीक सामने अलकनन्दा के तट पर विशाल चट्टान पर स्थित यह मन्दिर युगों से अलकनन्...
देवभूमि गढ़वाल के अतिप्राचीनतम शिवालयों में से एक महत्वपूर्ण शिवालय है कमलेश्वर महादेव मन्दिर। इस मन्दिर पार्श्व भाग में गणेश एवं शंकराचार्य की मूर्तियां हैं। मुख्यमन्दिर के एक और कमरे में बने सरस्वती गंगा तथा अन्नपूर्णा की...
कल्याणेश्वर मन्दिर श्रीनगर के गणेश बाजार में स्थित है। यह श्रीनगर के नये मन्दिरों में सबसे भव्य और दर्शनीय मन्दिर है। कल्याणेश्वर महादेव मन्दिर का ना ही कोई पौराणिक सन्दर्भ मिलता है ना ही ऐतिहासिक महत्व, यह मन्दिर कुछ दशक ...
कंसमर्दिनी सिद्धपीठ की गणना गढ़वाल के देवी सिद्धपीठों में की जाती है। परंपराओं के अनुसार इसको शंकराचार्य के आदेश से विश्वकर्मा ने बनाया था। पुराणों में प्रसिद्ध है कि कंस द्वारा जब महामाया को शिला पर पटका गया था तो वे उसके ...