श्रीनगर एस०एस०बी कैम्पस के ठीक सामने गंगापार अलकनन्दा के दांयें किनारे पर २०० फीट ऊंची चट्टान पर रणिहाट नामक स्थान है, जहां पर राजराजेश्वरी देवी का बहुत प्राचीन तथा विशाल मंदिर है। मन्दिर की ऊंचाई लगभग ३० फीट है तथा इस मन्दिर में मुख्य मूर्ति भगवती की है। इसके मण्डप की छत विशेष रुप से अपने वृहदाकार, भार एवं भौली से ध्यान आकृष्ट कराती है। वास्तुविदों ने इसे फंसाण का नाम दिया है। नीचे से आठ विशाल प्रस्तर स्तम्भ इसके आधार और टिकाव को मजबूती प्रदान करते है। इस मन्दिर की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि सोये हुये शंकर की नाभि पर चतुर्भुजी रूप में मां राजराजेश्वरी (देवी पार्वती) पद्मासन मुद्रा में विराजमान हैं। इसके पीछे लाल पर्दे के पीछे देवी की विशाल शिला मूर्ति है, जिसके दर्शन पूर्णतया वर्जित हैं। मन्दिर के आसपास कई छोटे बड़े मन्दिर हैं जिन्हे देवकुल कहते हैं। इतिहासकार डा० शिव प्रसाद नैथानी के अनुसार पुरातात्विक विश्लेषण से सिद्ध हुआ है कि रणिहाट के मंदिर ८वी शताब्दी के है। तथा मंदिर में रखी मूर्तियॉ ८वी शताब्दी के बाद की है। राजेश्वरी मंदिर के उत्तरी दीवार के भित्ति में टिकाकर खड़ी महिषासुर मर्दिनी की पाषाण मूर्ति ११वीं शताब्दी की है। राजेश्वरी के निकट ही एक १० फीट ऊंचा रथमंदिर विद्द्यमान है। जिसे कोई निरंकार/झलंकार तो कोई शिवमंदिर कहता है। इसमें कोई सभामण्ड़प नहीं है परन्तु अन्य छोटे मंदिरों के समान अन्तराल की प्रवृत्ति है। राजेश्वरी मंदिर के मण्ड़प में पूर्वी भित्ति पर टिकाकर रखी है 'नृवाराह मूर्ति`। तीन फीट लम्बी इस मूर्ति में विष्णु का बारह अवतार इसमें शेषनाग पर पैर टिकाकर जिस तरह बायें हाथ व घुटने के सहारे भूदेवी को उठाये उद्वार कर रहा है, वह भाव प्रशंसनीय है। मूर्ति से पत्थर से ही आभास होता है कि यह मूर्ति महिषासुर मर्दिनी से भी ३-४ सौ साल पुरानी है। नवरात्रों और चैत्रमास में यहां विशेष पूजा होती है। पुराने समय में यहां देवदासी प्रथा थी। अनेक देवनारियां मन्दिर में देवी भगवती की पूजा अर्चना करती थीं। शाक्त परंपरा का यह श्रीनगर का सबसे बड़ा मन्दिर है। मन्दिर के अन्दर तथा बाहर अनेक मूर्तियां तथा अवशेष हैं जिससे इसकी प्राचीनता का अनुमान लगाया जा सकता है।
कमलेश्वर महादेव के उत्तर में अलकनन्दा तट पर स्थित केशोराय मठ उत्तराखण्ड शैली में बना हुआ अत्यन्त सुन्दर मन्दिर है। बड़ी-बड़ी प्रस्तर शिलाओं से बनाये गये इस मन्दिर की कलात्मकता देखते ही बनती है। कहा जाता है कि संवत् १६८...
श्रीनगर में यह मन्दिर अत्यन्त प्रसिद्ध माना जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार मान्यता है कि ब्रह्महत्या के भय से भागते हुये भगवान शिव ने इस स्थान पर नागों अर्थात सर्पों को छुपा दिया था। जिस गली में यह मन्दिर स्थित है उसे स्...
श्रीनगर स्थित जैन मन्दिर अपनी कलात्मकता तथा भव्यता के प्रसिद्ध है। यह जैन धर्म की दिगम्बर शाखा के अनुयायियों का मन्दिर है। कहा जाता है कि १८९४ ईसवी की विरही की बाढ़ से पहले यह मन्दिर पुराने श्रीनगर में स्थित था परन्तु बाढ़ म...
पालीटेक्निक कालेज श्रीनगर एवं एस० एस० बी० के मध्य में गंगातट के केदारघाट के ऊपर स्थित शंकरमठ श्रीनगर का प्राचीन मन्दिर है। उत्तराखण्ड शैली में बना हुआ यह मन्दिर बहुत आकर्षक है। हालांकि शंकरमठ नाम से इस मन्दिर मठ के शैव होन...
कल्याणेश्वर मन्दिर श्रीनगर के गणेश बाजार में स्थित है। यह श्रीनगर के नये मन्दिरों में सबसे भव्य और दर्शनीय मन्दिर है। कल्याणेश्वर महादेव मन्दिर का ना ही कोई पौराणिक सन्दर्भ मिलता है ना ही ऐतिहासिक महत्व, यह मन्दिर कुछ दशक ...
गढ़वाल के पांच महातम्यशाली शिव सिद्धपीठों किलकिलेश्वर, क्यूंकालेश्वर, बिन्देश्वर, एकेश्वर, ताड़केश्वर में किलकिलेश्वर का प्रमुख स्थान है। श्रीनगर के ठीक सामने अलकनन्दा के तट पर विशाल चट्टान पर स्थित यह मन्दिर युगों से अलकनन्...