Wednesday October 30, 2024
234x60 ads

कन्या भ्रूण हत्या समस्या नहीं देन है

AdministratorMay 10, 2013 | विविध

देश में पुरुषों के मुकाबले स्त्रियों की कम होती संख्या चिंता का विषय है। यह चिंता होना भी चाहिये क्योंकि जब हम मानव समाज की बात करते हैं तो वह दोनों पर समान रूप से आधारित है। रिश्तों के नाम कुछ भी हों मगर स्त्री और पुरुष के बीच सामजंस्य के चलते ही परिवार चलता है और उसी से देश को आधार मिलता है। इस समय स्त्रियों की कमी का कारण ‘कन्या भ्रुण हत्या’ को माना जा रहा है जिसमें उसके जनक माता, पिता, दादा, दादी, नाना और नानी की सहमति शामिल होती है। यह संभव नहीं है कि कन्या भ्रूण  हत्या में किसी नारी की सहमति न शामिल हो। संभव है कि नारीवादी कुछ लेखक इस पर आपत्ति करें पर यह सच नहीं बदल सकता क्योंकि हम अपने समाज की कुरीतियों, अंधविश्वासों और पाखंडों को अनदेखा नहीं कर सकते जिसमें स्त्री और पुरुष समान रूप से शामिल होते दिखते हैं। अनेक समाज सेवकों, संतों तथा बुद्धिजीवी निंरतर कन्या भ्रुण हत्या के विरुद्ध अभियान छेड़े हुए हैं-उनकी गतिविधियों की प्रशंसा करना चाहिये। मगर हमें यह बात भी देखना चाहिये कि ‘कन्या भ्रुण हत्या’ कोई समस्या नहीं बल्कि समाज में व्याप्त दहेज प्रथा तथा अन्य प्रकार की सामाजिक सोच का परिणाम है। ‘कन्या भ्रुण हत्या’ रोको जैसे नारे लगाने से यह काम रुकने वाला नहीं है भले ही कितनी ही राष्ट्रभक्ति या भगवान भक्ति की कसमें खिलाते रहें। अनेक धार्मिक संत अपने प्रवचनों में भी यही मुद्दा उठा रहे हैं। अक्सर वह लोग कहते हैं कि ‘हमारे यहां नारी को देवी की तरह माना जाता है’। सवाल यह है कि वह किसे संबोधित कर रहे हैं-क्या उनमें नारियां नहीं हैं जो कहीं न कहीं इसके लिये किसी न किसी रिश्ते के रूप में शामिल होती हैं। दहेज प्रथा पर बहुत लिखा गया है। उस पर लिखकर कर विषय के अन्य पक्ष को अनदेखा करना व्यर्थ होगा। मुख्य बात है सोच की।

हममें से अनेक लोग पढ़ लिखकर सभ्य समाज का हिस्सा बन गये हैं पर नारी के बारे में पुरातन सोच नहीं बदल पाये। लड़की के पिता और लड़के के पिता में हम स्वयं भी फर्क करते दिखते हैं पर तब हमें इस बात का अनुमान नहीं होता कि अंततः यह भाव एक ऐसी मानसिकता का निर्माण करता है जो ‘कन्या भ्रुण हत्या’ के लिये जिम्मेदार बनती है। शादी के समय लड़की वालों को तो बस किसी भी तरह बारातियों को झेलना है और लड़के वालों को तो केवल अपनी ताकत दिखाना है। अनेक बार ऐसी दोहरी भूमिकायें हममें से अनेक लोग निभाते रहे हैं। तब हम यंत्रवत चलते रहते हैं कि यह तो पंरपरा है और इसे निभाना है। शादी के समय जीजाजी का जूता साली चुराती है और उसे पैसे लेने हैं पर इससे पहले उसका पिता जो खर्च कर चुका होता है उसे कौन देखता है। साली द्वारा जुता चुराने की रस्म बहुत अच्छी लगती है पर उससे पहले हुई रस्में निभाते हुए दुल्हन का बाप कितना परेशान होता है यह देखने वाली बात है।

हमारे यहां अनेक प्रकार के समाज हैं। कमोबेश हर समाज में नारी की स्थिति एक जैसी है। उस पर उसका पिता होना मतलब अपना सिर कहीं झुकाना ही है। अनेक लोग कहते भी हैं कि ‘लड़की के बाप को सिर तो झुकाना ही पड़ता है।’
कुछ समाजों ने तो अब शराब खोरी और मांसाहार परोसने जैसे काम विवाहों के अवसर सार्वजनिक कर दिये हैं जो कभी हमारी परंपरा का हिस्सा नहीं रहे। वहां हमने पाश्चात्य सभ्यता का मान्यता दी पर जहां लड़की की बात आती है वहां हमें हमारा धर्म, संस्कार और संस्कृति याद आती है और उसका ढिंढोरा पीटने से बाज नहीं आते।

कहने का अभिप्राय यह है कि ‘कन्या भ्रुण हत्या’ का नारा लगाना है तो नारा लगाईये पर देश के लोगों को प्रेरित करिये कि
1. शादी समारोह अत्यंत सादगी से कम लोगों की उपस्थिति में करें। भले ही बाद में स्वागत कार्यक्रम स्वयं लड़के वाले करें।
2. दहेज को धर्म विरोधी घोषित करें। याद हमारे यहां दहेज का उल्लेख केवल भगवान श्रीराम के विवाह समारोह में दिया गया था पर उस समय की हालत कुछ दूसरे थे। समय के साथ चलना ही हमारे अध्यात्मिक दर्शन का मुख्य संदेश हैं।
3. लोगों को यह समझायें कि अपने बच्चों का उपयेाग अस्त्र शस्त्र की तरह न करें जिससे चलाकर अपनी वीरता का परिचय दिया जाता है।
4. अनेक रस्मों को रोकने की सलाह दें।

याद रखिये यही हमारा समाज हैं। अगर आज किसी को तीन लड़कियां हों तो उसे सभी लोग वैसे ही बिचारा कहते हैं। ऐसा बिचारा कौन बनना चाहेगा? जब तक हम अपने समाज में व्याप्त दहेज प्रथा, शादी में अनाप शनाप खर्च तथा सोच को नहीं बदलेंगे तब तक कन्या भ्रुण हत्या रोकना संभव नहीं है। दरअसल इसके लिये न केवल राजनीतिक तथा कानूनी प्रयास जरूरी हैं बल्कि धार्मिक संतों के साथ सामाजिक संगठनों को भी कार्यरत होना चाहिये। सबसे ज्यादा हैरानी की बात यह है कि जब लड़कियों की संख्या इतनी कम हो रही है तब भी लड़के वालों के दहेज बाजार में भाव क्यों नहीं गिर रहे? लाखों रुपये का दहेज, गाड़ी तथा अन्य सामान निरंतर दहेज में दिया जा रहा है। इतना ही नहीं लड़कियों के सामाजिक सम्मान में भी कोई बढ़ोतरी नहीं हो रही है। इन सभी बातों का विश्लेषण किये बिना ‘कन्या भ्रुण हत्या’ रोकने के लिये प्रारंभ वैचारिक अभियान सफल हो पायेगा इसमें संदेह है।



All articles of content editor | All articles of Category

Comments

Leave your comment

Your Name
Email ID
City
Comment
    

Articles






Success