नन्दा देवी राजजात के पड़ाव - बारहवाँ पड़ाव - मुन्दोली से वाण
Vinay Kumar Dogra । August 28, 2014 | पर्व तथा परम्परा |
नन्दा देवी राजजात के पड़ाव - बारहवाँ पड़ाव - मुन्दोली से वाण
आज दिनांक २९-अगस्त-२०१४ को श्री नन्दादेवी राजजात मुन्दोली गाँव से वाण गांव के लिये प्रस्थान करेगी। मुन्दोली के बाद अगला पड़ाव वाण है। यह राजजात यात्रा का अन्तिम गांव है। यह गाँव कई किलोमीटर तक फैला हुआ है। यहाँ पर लाटू देवता के मन्दिर के भीतरी कपाट इसी दिन खोले जाते हैं और पूजा की जाती। वाण में नन्दा का मन्दिर गाँव के बीच में नया बनाया गया है। इसके अलावा गोलू देवता, काली, दानू देवता का मन्दिर भी यहाँ पर स्थित है। वाण में कपीरी, कुमाऊं, दशोली, बधाण, पैनखण्डा आदि क्षेत्रों के देवी देवताओं की डोलियां, निशान, कटार, एवं भोजपत्र की छंतोलियां शामिल होती हैं। वाण गाँव यात्रा का अन्तिम गाँव है तथा यह इस यात्रा का बस्ती में अन्तिम पड़ाव है। इसके बाद निर्जन पड़ावों में रात्रि विश्राम होता है। मुन्दोली जो यात्री नहीं पहुँच पाते हैं वे सीधे ही वाण आते हैं। वाण में दशोली कुरूड़ की नन्दा, लाटू, कण्डारा, हिन्डोली, दशमद्वार की नन्दा, केदारू पौंल्या, नौंना की नन्दादेवी, नौली का लाटू, मेठा का लाटू, वालम्पा देवी, कुमजुंग से ज्वाल्पा देवी की डोली, लासी का जाख, खैनूरी का जाख, मझोटी की नन्दा, फरस्वाण पफाट के 6 यक्ष देवता, सैंजी का आदित्य देवता, बण्ड की नन्दा, कुरूड़, पगना का भूमियाल, सरतोली का पस्वा, द्यौ सिंह देवता, काण्डई, लाखी का रूपदान, जस्यारा, कपीरी, बद्रीश छंतोली डिम्पर, द्यो सिंह सुतोल, कोट डंगोली की कटार, स्येरा भैंटी की भगवती, वूरा की नन्दा, रामणी का भुम्याल, राजकोटी लाटू, घूनी का गोरिया आदि 200 से अध्कि देवी देवताओं का मिलन होता है। वाण से यहां का प्रसिद्ध लाटू देवता राजजात की अगुवाई करता है। लाटू देवता का मन्दिर देवदार के पेड़ो से घिरा हुआ है। अन्दर का कपाट मात्रा राजजात में ही खोला जाता है। लाटू के डंगरिया के अतिरिक्त कोई अन्दर नहीं जा सकता है।
राजजात यात्रा पंचायती चौक में रूकती है। यहां पर लाटू का निशान होता है। यहाँ पर यज्ञ तथा सभी देवी देवताओं की पूजा होती है। यहां पर गाये जाने वाले झोड़ा-चांचड़ी विशेष उल्लेखनीय हैं।
मान्यता है कि वाण गाँव वालों को नंददेवी का आदेश है कि जिस दिन मेरी यात्रा तुम्हारे गाँव में आयेगी उस दिन तुम्हें अपने घरों पर ताले नहीं लगाने होंगे तथा मेरे साथ आये यात्रियों की सेवा करनी होगी। जो मेरे आदेश का पालन नहीं करेगा उसे कुष्ठ रोग हो जायेगा। माना जाता है कि इस यात्रा के अवसर पर वे मकानों की सफाई कर उन्हें राजजात यात्रियों के लिए खुला छोड़ देते हैं स्वयं सपरिवार गोशालाओं में चले जाते हैं। वाण गाँव के सहयोग से ही हजारों तीर्थ यात्री संसाधन हीनता के बावजूद भी सुकून से एक रात्रि बिता पाते हैं।
लेख साभार : श्री नन्दकिशोर हटवाल
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