किसी नाम के आगे ईश्वर लगाकर उसको किसी देवी-देवता की उपाधि से विभूषित कर देना हिन्दू संस्कृति की पुरानी परंपरा है। रामायण काल के मूक साक्षी सितोन्स्यूं क्षेत्र में जहां मनसार का मेला लगता है, से एक फर्लांग की दूरी पर तीन नदियों के संगम पर स्थित हैं। कोटमहादेव जिसे आज भी बाल्मीकेश्वर के नाम से जाना जाता है। यहीं कोरसाड़ा ग्राम के मध्य कुषाण कालीन ईंटे प्राप्त हुई हैं। जिनसे इस क्षेत्र की तत्कालीन आवसीय व्यवस्था के साक्ष्यों की पुष्टि होती है। कोट महादेव के निकट ही कोरसाड़ा ग्राम के ऊपर एक ऊंचे टीले पर पाषाण का प्राचीन मन्दिर आज भी सुरक्षित खड़ा है। इस मन्दिर में आज कोई मूर्ति नहीं है और ना उसका धार्मिक महत्व ही किसी को विदित है परन्तु स्थानीय निवासियों के अनुसार इसे बाल्मीकि कुटिया कहा जाता है। हो सकता है कि ऐतिहासिक सामग्री के सर्वथा आभाव में इन सब तथ्यों को प्रमाणिक करना भी मुश्किल है परन्तु यह निर्विवाद है कि रामायण काल में पट्टी सितोन्स्यूं ऐतिहासिक दृष्टि से महत्वपूर्ण उपत्त्यका रही है। सीता माता के नाम पर यहां का नामकरण और उसी से संबन्धित मनसार मेले की स्थापना इसकी ऐतिहासिकता की सूचक है।
यह ऐतिहासिक घटनाओं से इतनी घनिष्टतापूर्वक संबन्धित है कि उसे सर्वथा अकारण कहने का साहस नहीं होता। आज भी यहां के खेतों में सैकड़ों वर्ष पुरानी असाधारण माप की ईंटें प्राप्त होती हैं। वह ईंटें कब और क्यों बनाई गईं यह सब अविदित है कि खुदाई करने पर कई स्थानों से प्राचीन ऐतिहासिक वस्तुयें निकलती हैं। लगभग पांच दशक पूर्व कोटासाड़ा और उड्डा गांव में खेल ही खेल में लड़कों द्वारा तीन बड़े प्राचीन कुण्ड निकले हैं। नागर्जुन गांव के खण्डहरों में कई शिवलिंग मिलें हैं। कई गावों में विशाल प्रस्तरखण्डों द्वारा निर्मित वृह्दाकार थर्प उस युग के पंचायत राज की सर्वोत्तम प्रजातन्त्रात्मक शासन प्रणाली के परिचालक हैं।
सीता और लक्ष्मणजी सितोन्स्यूं क्षेत्र की जनता के प्रमुख अराध्य देव हैं। देवल गांव में शेषावतार लक्ष्मण जी का एक अति प्राचीन मन्दिर है। इसके चारों और छोटे बड़े ११ प्राचीन मन्दिर और हैं। इन बारह मन्दिरों की संरचना और उनमें स्...
पौड़ी शहर का एक मात्र हनुमान मन्दिर मुख्य बस स्टेशन से लगभग ४ किलोमीटर की दूरी पर कण्डोलिया-बुवाखाल मार्ग पर स्थित है। यहां से हिमालय की विस्तार पर्वत श्रृखंला का दर्शन पर्यटक एवं श्रद्धालुओं के लिये किसी विस्मय से कम नहीं ...
संपूर्ण उत्तराखण्ड देवभूमि के नाम से विख्यात है। ऋषि मुनियों की यह पुण्यभूमि आज भी अनेक देवी देवताओं के नाम पर प्रतिष्ठित मन्दिरों को अपनी गोद में आश्रय दिये हुये भारतीय संस्कृति को पोषित कर रही है। प्राचीनकाल से ही भक्तगण...
पौड़ी बस स्टेशन से लगभग तीन किलोमीटर की दूरी पर कण्डोलिया-बुवाखाल मार्ग पर स्थित है घने जंगल के मध्य स्थित है "नागदेव मंदिर"। प्राकृतिक सौन्दर्य से परिपूर्ण घने बांज, बुरांश तथा गगनचुम्बी देवदार, चीड़ के वृक्षों के...
कण्डोलिया देवता वस्तुत: चम्पावत क्षेत्र के डुंगरियाल नेगी जाति के लोगों के इष्ट "गोरिल देवता" है। कहा जाता है कि डुंगरियाल नेगी जाति के पूर्वजों ने गोरिल देवता से यहां निवास करने का अनुरोध किया था जिन्हे वे पौड़ी ...
बस स्टेशन पौड़ी से कुछ ही दूरी पर स्थित "लक्ष्मीनारायण मन्दिर" की स्थापना १४-फरवरी-१९१२ संक्रान्ति पर्व पर की गई थी। इस मन्दिर में स्थापित लक्ष्मी और नाराय़ण की मूर्ति सन् १९१२ पूर्व विरह गंगा की बाढ़ आने के उ...