पौड़ी शहर का एक मात्र हनुमान मन्दिर मुख्य बस स्टेशन से लगभग ४ किलोमीटर की दूरी पर कण्डोलिया-बुवाखाल मार्ग पर स्थित है। यहां से हिमालय की विस्तार पर्वत श्रृखंला का दर्शन पर्यटक एवं श्रद्धालुओं के लिये किसी विस्मय से कम नहीं है। इस मन्दिर की स्थापना वर्ष १९९१ में की गई थी । मन्दिर की स्थापना के पीछे कोई पौराणिक मान्यता नहीं है। इसकी स्थापना एवं मन्दिर का निर्माण स्थानीय होटल व्यवसायी स्व० श्री शिब्बू घिल्डियाल जी के द्वारा अपनी स्व० पुत्री प्राची की स्मृति में करवाया था। वर्ष में एक बार मन्दिर परिसर में विशाल भण्डारा, मेला आयोजित किया जाता है, तथा इस विशाल भण्डारे की संपूर्ण व्यवस्था श्री घिल्डियाल जी ही करते हैं। धार्मिक पर्यटन के दृष्टिकोण से मन्दिर परिसर की स्थलाकृति महत्वपूर्ण है। यहां से नागदेव, झण्डीधार, कण्डोलिया का सघन वन क्षेत्र करीब लगते हिमशिखर एवं शुद्ध हवा की शीतलता पर्यटकों तथा श्रद्धालुओं का मन मोह लेते हैं। धार्मिक आस्था के इस मन्दिर में प्रत्येक मंगलवार प्रात: एवं सायंकाल को बजरंगी भक्तों की भीड़ लगी रहती है। हाथों में "बूंदी" का प्रसाद लिये भक्तों में युवाओं की संख्या अत्यधिक होती है। मार्च माह से जून माह के मध्य गर्मियों की शाम कण्डोलिया - नागदेव - बुवाखाल सड़क मार्ग हनुमान मन्दिर तक सैरगाह के लिये भी उत्तम है। साभार : वीरेन्द्र खंकरियाल [पौड़ी और आस पास]
आदेश्वर महादेव मन्दिर "रानीगढ़" पहुंचने के लिये पौड़ी मुख्यालय से कण्डोलिया होते हुये पौड़ी-कांसखेत-सतपुली मोटर मार्ग पर लगभग १८ कि०मी० का सफर तय करके अदवानी नामक एक छोटे से गांव तक आना पड़ता है। यह पूरा क्षेत्र गढ़वा...
पौड़ी शहर से ९ किलोमीटर की दूरी पर पौड़ी-देवप्रयाग राजमार्ग पर आंछरीखाल नामक स्थान पर स्थित है मां वैष्णो देवी का मन्दिर। धार्मिक एवं दर्शनीय पर्यटन के लिये यह स्थान काफी रमणीक है। यहां से हिमालय की विस्तृत दृश्यावली के साथ ...
पौड़ी बस स्टेशन से लगभग तीन किलोमीटर की दूरी पर कण्डोलिया-बुवाखाल मार्ग पर स्थित है घने जंगल के मध्य स्थित है "नागदेव मंदिर"। प्राकृतिक सौन्दर्य से परिपूर्ण घने बांज, बुरांश तथा गगनचुम्बी देवदार, चीड़ के वृक्षों के...
संपूर्ण उत्तराखण्ड देवभूमि के नाम से विख्यात है। ऋषि मुनियों की यह पुण्यभूमि आज भी अनेक देवी देवताओं के नाम पर प्रतिष्ठित मन्दिरों को अपनी गोद में आश्रय दिये हुये भारतीय संस्कृति को पोषित कर रही है। प्राचीनकाल से ही भक्तगण...
देवलगढ़ का उत्तराखण्ड के इतिहास में अपना एक अलग ही महत्व है। प्राचीन समय में उत्तराखण्ड ५२ छोटे-छोटे सूबों में बंटा था जिन्हें गढ़ के नाम से जाना जाता था और इन्ही ने नाम पर देवभूमि का यह भूभाग गढ़वाल कहलाया। १४वीं शताब्दी में...
सीता और लक्ष्मणजी सितोन्स्यूं क्षेत्र की जनता के प्रमुख अराध्य देव हैं। देवल गांव में शेषावतार लक्ष्मण जी का एक अति प्राचीन मन्दिर है। इसके चारों और छोटे बड़े ११ प्राचीन मन्दिर और हैं। इन बारह मन्दिरों की संरचना और उनमें स्...