श्रीनगर स्थित जैन मन्दिर अपनी कलात्मकता तथा भव्यता के प्रसिद्ध है। यह जैन धर्म की दिगम्बर शाखा के अनुयायियों का मन्दिर है। कहा जाता है कि १८९४ ईसवी की विरही की बाढ़ से पहले यह मन्दिर पुराने श्रीनगर में स्थित था परन्तु बाढ़ में बह जाने के कारण नवीन श्रीनगर की स्थापना होने पर इस मन्दिर का पुनर्निर्माण कराया गया। इस मन्दिर का निर्माण वर्ष १९११ ईसवीं में प्रारंभ होकर १९२४ ईसवीं में पूर्ण हुआ। मन्दिर के गर्भ गृह में भगवान ऋषभदेव व भगवान पार्श्वनाथ की भव्य मूर्तियां प्रतिष्ठित हैं। मन्दिर के साथ एक धर्मशाला भी स्थापित है। गर्भ गृह में एक राजस्थानी शैली में निर्मित सिंहासन है तथा चौपाये सिंहासन पर मूर्ति विराजमान है। वर्ष 1970 में प्रसिद्ध जैन मुनि श्री विद्यानंदजी यहां आकर कुछ दिनों तक ठहरे थे।
काली कमली धर्मशाला के उत्तर तथा राजकीय बालिका इन्टर कालेज के निकट स्थित जैन मन्दिर ऋषिकेश के बाद पर्वतीय क्षेत्र का पहला जैन मन्दिर है। मन्दिर का प्रवेशद्वार मन्दिर की तरह ही श्यामल वर्ण के पाषाण का बना भव्य तथा कलात्मक है, मन्दिर में प्रवेश के साथ ही गढ़वाल के तत्कालीन संगतराशों की कार्यकुशलता का परिचय मिलता है। मुख्य प्रवेश द्वार पर पुराने राजभवनों तथा हवेलियों के मुख्यद्वार की तरह ही दोनों तरफ एक एक शानदार खोलियां बनी हैं जिन्हें महलों में संभवतया पहरेदारों के लिये बनाया जाता रहा होगा। प्रवेशद्वार से मन्दिर के प्रांगण में प्रवेश करते ही बायीं तरफ पूर्वाभिमुखी भव्य मन्दिर स्थित है। सामने से देखने पर मन्दिर के बरामदे के खम्भे, तथा उनके ऊपर की नक्काशी, उनके ऊपर मन्दिर के छत के नीचे से जुड़ी हुई १३ कलात्मक संरचनायें (दासा) मन्दिर की सुंदरता में चार चांद लगा देती हैं। मन्दिर के गर्भ गृह में भगवान ऋषभदेव व भगवान पार्श्वनाथ की भव्य मूर्तियां प्रतिष्ठित हैं। मन्दिर के साथ एक धर्मशाला भी स्थापित है। गर्भ गृह में एक राजस्थानी शैली में निर्मित सिंहासन है तथा चौपाये सिंहासन पर मूर्ति विराजमान है। मन्दिर के प्रांगण में एक भव्य चौखम्भी स्थित है यह भी श्यामल पाषाण से निर्मित है इसके अन्दर सिन्दूर से पुते दो पाषाण रखे हैं जिन्हे स्थानीय निवासी क्षेत्रपाल भैरव मानकर पूजते हैं।
कमलेश्वर महादेव के उत्तर में अलकनन्दा तट पर स्थित केशोराय मठ उत्तराखण्ड शैली में बना हुआ अत्यन्त सुन्दर मन्दिर है। बड़ी-बड़ी प्रस्तर शिलाओं से बनाये गये इस मन्दिर की कलात्मकता देखते ही बनती है। कहा जाता है कि संवत् १६८...
पालीटेक्निक कालेज श्रीनगर एवं एस० एस० बी० के मध्य में गंगातट के केदारघाट के ऊपर स्थित शंकरमठ श्रीनगर का प्राचीन मन्दिर है। उत्तराखण्ड शैली में बना हुआ यह मन्दिर बहुत आकर्षक है। हालांकि शंकरमठ नाम से इस मन्दिर मठ के शैव होन...
गढ़वाल के पांच महातम्यशाली शिव सिद्धपीठों किलकिलेश्वर, क्यूंकालेश्वर, बिन्देश्वर, एकेश्वर, ताड़केश्वर में किलकिलेश्वर का प्रमुख स्थान है। श्रीनगर के ठीक सामने अलकनन्दा के तट पर विशाल चट्टान पर स्थित यह मन्दिर युगों से अलकनन्...
नवनाथ परम्परा में गोरखनाथ जी नौ वें नाथ जो कि गुरू मछिन्दरनाथ के शिष्य थे। गुरु गोरखनाथ ने हठयोग का प्रचार किया था और अनेक ग्रन्थों की रचना भी की थी। अवधारणा है कि गुरू गोरखनाथ की केवल दो ही स्थानों पर गुफायें बनाई गई है...
कटकेश्वर महादेव (घसिया महादेव) श्रीनगर से रूद्रप्रयाग जाने वाले मार्ग पर श्रीनगर से लगभग एक किलोमीटर की दूरी पर मुख्य मार्ग पर स्थित है "कटकेश्वर महादेव"। सड़के दायें दक्षिण दिशा में स्थित इस मन्दिर का निर्...
कंसमर्दिनी सिद्धपीठ की गणना गढ़वाल के देवी सिद्धपीठों में की जाती है। परंपराओं के अनुसार इसको शंकराचार्य के आदेश से विश्वकर्मा ने बनाया था। पुराणों में प्रसिद्ध है कि कंस द्वारा जब महामाया को शिला पर पटका गया था तो वे उसके ...