कंसमर्दिनी सिद्धपीठ की गणना गढ़वाल के देवी सिद्धपीठों में की जाती है। परंपराओं के अनुसार इसको शंकराचार्य के आदेश से विश्वकर्मा ने बनाया था। पुराणों में प्रसिद्ध है कि कंस द्वारा जब महामाया को शिला पर पटका गया था तो वे उसके हाथ से छूट गई तथा इस स्थान पर आकर प्रतिष्ठित हो गई। कंसमर्दिनी सिद्धपीठ शाक्तों का प्राचीन प्रसिद्ध पीठ रहा है। इसका संचालन घिल्डियाल वंशी ब्राह्मणों के द्वारा किया जाता है। इस मन्दिर में १८६६ विक्रमी के कुछ शिलालेख यहां पर मिलते हैं। जिसमें ऐसा प्रतीत होता है कि गोरखाओं ने इस मन्दिर का जीर्णोद्धार करवाया था। श्रीनगर के रामलीला मैदान से जो रास्ता अलकनन्दा नदी की तरफ जाता है उसी रास्ते के दाहिनी तरफ और नगर के उत्तर की तरफ यह सिद्धपीठ स्थित है। इतिहासकार डा० शिवप्रसाद नैथानी जी के अनुसार प्राचीन श्रीक्षेत्र में शाक्तमत के अन्तर्गत तीन प्रसिद्ध सिद्धपीठ थे। राजराजेश्वरी रणिहाट, दक्षिण कालिका श्रीनगर और कोट्या की कंसमर्दिनी। इनमे राजराजेश्वरी गंगापार रणिहाट में थी जो आज भी है, परन्तु आराधकों ने उपेक्षा कर दी है। दक्षिण कालिका जो श्रीयंत्र के निकट थी श्रीनगर के गढ़नरेशों के राज्यकाल में ही बह गई थी और वहां मात्र श्मशानघाट ही निशानी के रूप में बचा रह गया है। परन्तु कंसमर्दिनी पीठ आज भी है और घिल्डियाल तथा धनाई जाति की इष्टदेवी के रूप में तो ख्याति प्राप्त है ही, समृद्धि को प्राप्त हो रहे श्रीनगर के आस्थावान जनों के बीच परम सिद्धिदात्री भी मानी जाती है।
पालीटेक्निक कालेज श्रीनगर एवं एस० एस० बी० के मध्य में गंगातट के केदारघाट के ऊपर स्थित शंकरमठ श्रीनगर का प्राचीन मन्दिर है। उत्तराखण्ड शैली में बना हुआ यह मन्दिर बहुत आकर्षक है। हालांकि शंकरमठ नाम से इस मन्दिर मठ के शैव होन...
कमलेश्वर महादेव के उत्तर में अलकनन्दा तट पर स्थित केशोराय मठ उत्तराखण्ड शैली में बना हुआ अत्यन्त सुन्दर मन्दिर है। बड़ी-बड़ी प्रस्तर शिलाओं से बनाये गये इस मन्दिर की कलात्मकता देखते ही बनती है। कहा जाता है कि संवत् १६८...
श्रीनगर में यह मन्दिर अत्यन्त प्रसिद्ध माना जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार मान्यता है कि ब्रह्महत्या के भय से भागते हुये भगवान शिव ने इस स्थान पर नागों अर्थात सर्पों को छुपा दिया था। जिस गली में यह मन्दिर स्थित है उसे स्...
कल्याणेश्वर मन्दिर श्रीनगर के गणेश बाजार में स्थित है। यह श्रीनगर के नये मन्दिरों में सबसे भव्य और दर्शनीय मन्दिर है। कल्याणेश्वर महादेव मन्दिर का ना ही कोई पौराणिक सन्दर्भ मिलता है ना ही ऐतिहासिक महत्व, यह मन्दिर कुछ दशक ...
नवनाथ परम्परा में गोरखनाथ जी नौ वें नाथ जो कि गुरू मछिन्दरनाथ के शिष्य थे। गुरु गोरखनाथ ने हठयोग का प्रचार किया था और अनेक ग्रन्थों की रचना भी की थी। अवधारणा है कि गुरू गोरखनाथ की केवल दो ही स्थानों पर गुफायें बनाई गई है...
श्रीनगर स्थित जैन मन्दिर अपनी कलात्मकता तथा भव्यता के प्रसिद्ध है। यह जैन धर्म की दिगम्बर शाखा के अनुयायियों का मन्दिर है। कहा जाता है कि १८९४ ईसवी की विरही की बाढ़ से पहले यह मन्दिर पुराने श्रीनगर में स्थित था परन्तु बाढ़ म...