Thursday November 21, 2024
234x60 ads

नन्दा देवी राजजात के पड़ाव - ग्यारहवाँ पड़ाव - फल्दिया गाँव से मुन्दोली

Vinay Kumar DograAugust 28, 2014 | पर्व तथा परम्परा

नन्दा देवी राजजात के पड़ाव - ग्यारहवाँ पड़ाव - फल्दिया गाँव से मुन्दोली
आज दिनांक २८-अगस्त-२०१४ को श्री नन्दादेवी राजजात फल्दिया गाँव से मुन्दोली के लिये प्रस्थान करेगी। फल्दिया गाँव से आगे तिलफाड़ा के नन्दादेवी मन्दिर में बड़ा मेला लगता है। मान्यता है कि यहाँ पर भगवती ने शस्त्रों से तिल्वा नामक दैत्य को फाड़ दिया था। इसलिए इस स्थान का नाम तिलफाड़ा पड़ा। ल्वाणी, बडियारगड़ में पूजा पाते हुये यात्रा विश्राम हेतु मुन्दोली पहुँचती है। कर्णप्रयाग से मुन्दोली तक सीधी बस सेवा भी है। यह अन्तिम स्टेशन है। यहाँ से जीप द्वारा लोहाजंग और आगे वाण तक पहुँच सकते हैं। मुन्दोली में महिलायें व पुरूष संयुक्त रूप से झोड़ा गाने की परम्परा है। काली मन्दिर मुन्दोली से 3 कि0 मी0 उपर है। यहाँ पर प्राचीन पत्थर की मूर्ति है। विशेष पूजन के बाद रात भर जागरण होता है। मुन्दोली में भूमिगत जैपाल देवता के मन्दिर में नन्दादेवी की कटार है। इसी प्रकार जेठा बिष्ट परिवार की छंतोली टूटने के कारण उसकी छंतोली भी शामिल नही होती है। मुन्दोली के उफपर लोहाजंग की तरफ गाँव की परम्परा है कि जिसका वंश मिटता है यानी जिसकी कोई पुत्र सन्तान नहीं होती है वो सुरई पेड़ लगाता है तथा चबूतरा बनाता है। स्मृति स्वरूप चबूतरे पर पत्थर भी लगाता है और यह चबूतरा उसी के नाम से प्रसिद्ध होता है। इसे ‘अमुक का चैरा’ नाम से जाना जाता है। सुरई के इन पेड़ो को कोइ नहीं काटता है। फलस्वरूप यहां काफी पेड़ हैं। जो यात्री नौटी से चलकर सम्पूर्ण यात्रा में भाग नहीं ले पाते हैं या उच्च हिमालय क्षेत्र की यात्रा करना चाहते हैं या जिनके पास समय की कमी होती है, वे सीधे मुन्दोली पहुँच कर यात्रा में सामिल होते हैं। इसी कारण यात्रियों की भीड़ मुन्दोली में ही एकत्रित होती है। 

 

लेख साभार : श्री नन्दकिशोर हटवाल



All articles of content editor | All articles of Category

Comments

Leave your comment

Your Name
Email ID
City
Comment
    

Articles






Success