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दीपावली : महत्व एवं पूजन विधान

AdministratorNovember 01, 2013 | पर्व तथा परम्परा

कार्तिक मास की अमावस्या का दिन दीपावली के रूप में पूरे देश में बडी धूम-धाम से मनाया जाता हैं। इसे रोशनी  का पर्व भी कहा जाता है। कहा जाता है कि कार्तिक अमावस्या को भगवान रामचन्द्र जी चौदह वर्ष का बनवास पूरा कर अयोध्या लौटे थे। अयोध्या  वासियों ने श्री रामचन्द्र के लौटने की खुशी में दीप जलाकर खुशियाँ मनायी थीं,  इसी याद में आज तक दीपावली पर दीपक जलाए  जाते हैं और कहते हैं कि इसी दिन महाराजा विक्रमादित्य का राजतिलक भी हुआ था। आज के दिन व्यापारी अपने बही खाते बदलते है तथा लाभ हानि का ब्यौरा तैयार करते हैं।  दीपावली पर जुआ खेलने की भी प्रथा हैं। इसका प्रधान  लक्ष्य वर्ष भर में भाग्य की परीक्षा करना है। लोग जुआ खेलकर यह पता लगाते हैं कि उनका पूरा साल कैसा रहेगा।
पूजन विधानः दीपावली  पर माँ लक्ष्मी व गणेश के साथ सरस्वती मैया की भी पूजा की जाती है। भारत मे दीपावली परम्परम्पराओं का त्यौंहार है। पूरी परम्परा व श्रद्धा के साथ दीपावली का पूजन किया जाता है। इस दिन लक्ष्मी पूजन में माँ लक्ष्मी  की प्रतिमा या चित्र की पूजा की जाती है। इसी तरह लक्ष्मी जी का पाना भी बाजार में मिलता है जिसकी परम्परागत पूजा की जानी अनिवार्य है। गणेश पूजन के बिना कोई भी पूजन अधूरा होता है इसलिए लक्ष्मी के साथ गणेश पूजन भी किया जाता है। सरस्वती की पूजा का कारण यह है कि धन व सिद्धि के साथ ज्ञान भी पूजनीय है इसलिए ज्ञान की पूजा के लिए माँ  सरस्वती की पूजा की जाती है।

इस दिन धन व लक्ष्मी  की पूजा के रूप में लोग लक्ष्मी पूजा में नोटों की गड्डी व चाँदी के सिक्के भी रखते  हैं। इस दिन रंगोली सजाकर माँ लक्ष्मी को खुश किया जाता है। इस दिन धन के देवता कुबेर,  इन्द्र देव तथा समस्त मनोरथों को पूरा  करने वाले विष्णु भगवान की भी पूजा की जाती है। तथा रंगोली सफेद व लाल मिट्टी से बनाकर  व रंग बिरंगे रंगों से सजाकर बनाई जाती है।

पूजन विधिः दीपावली के दिन  दीपकों की पूजा का विशेष महत्व हैं। इसके लिए दो थालों में दीपक रखें। छः चौमुखे दीपक  दोनो थालों में रखें। छब्बीस छोटे दीपक भी दोनो थालों में सजायें। इन सब दीपको को प्रज्जवलित  करके जल, रोली, खील बताशे, चावल, गुड, अबीर, गुलाल, धूप, आदि से पूजन करें और टीका लगावें। व्यापारी लोग दुकान की गद्दी पर गणेश लक्ष्मी  की प्रतिमा रखकर पूजा करें। इसके बाद घर आकर पूजन करें। पहले पुरूष फिर स्त्रियाँ पूजन  करें। स्त्रियाँ चावलों का बायना निकालकर कर उस रूपये रखकर अपनी सास के चरण स्पर्श  करके उन्हें दे दें तथा आशीवार्द प्राप्त करें। पूजा करने के बाद दीपकों को घर में  जगह-जगह पर रखें। एक चौमुखा, छः  छोटे दीपक  गणेश लक्ष्मीजी के पास रख दें। चौमुखा  दीपक का काजल सब बडे बुढे बच्चे अपनी आँखो में डालें।

दीपावली पूजन कैसे करें

प्रातः स्नान करने  के बाद स्वच्छ वस्त्र धारण करें। अब निम्न संकल्प से  दिनभर उपवास रहें-

मम सर्वापच्छांतिपूर्वकदीर्घायुष्यबलपुष्टिनैरुज्यादि-सकलशुभफल प्राप्त्यर्थं
गजतुरगरथराज्यैश्वर्यादिसकलसम्पदामुत्तरोत्तराभिवृद्ध्यर्थं
इंद्रकुबेरसहितश्रीलक्ष्मीपूजनं करिष्ये।

संध्या के समय पुनः स्नान करें। लक्ष्मीजी के स्वागत की तैयारी में घर की सफाई करके यदि संभव हो तो दीवार को चूने अथवा गेरू से पोतकर लक्ष्मीजी का चित्र  बनाएं अथवा लक्ष्मीजी का छायाचित्र भी लगाया जा सकता है। भोजन में स्वादिष्ट  व्यंजन, कदली फल, पापड़ तथा अनेक प्रकार की मिठाइयाँ बनाएं। लक्ष्मीजी के चित्र  के सामने एक चौकी रखकर उस पर मौली बाँधें।
इस पर गणेशजी की मिट्टी  की मूर्ति स्थापित करें।
फिर गणेशजी को तिलक  कर पूजा करें।
अब चौकी पर छः चौमुखे व 26 छोटे दीपक रखें।
इनमें तेल-बत्ती डालकर जलाएं।
फिर जल, मौली, चावल, फल, गुढ़, अबीर, गुलाल, धूप आदि से विधिवत पूजन करें।
पूजा पहले पुरुष तथा बाद में स्त्रियां करें।
पूजा के बाद एक-एक दीपक घर के कोनों में जलाकर रखें।
एक छोटा तथा एक चौमुखा  दीपक रखकर निम्न मंत्र से लक्ष्मीजी का पूजन करें-

नमस्ते सर्वदेवानां वरदासि हरेः प्रिया।
या गतिस्त्वत्प्रपन्नानां  सा मे भूयात्वदर्चनात॥

इस मंत्र से इंद्र  का ध्यान करें-
ऐरावतसमारूढो वज्रहस्तो महाबलः।
शतयज्ञाधिपो देवस्तमा  इंद्राय ते नमः॥


इस मंत्र से कुबेर  का ध्यान करें-
धनदाय नमस्तुभ्यं निधिपद्माधिपाय  च।
भवंतु त्वत्प्रसादान्मे  धनधान्यादिसम्पदः॥

इस पूजन के पश्चात  तिजोरी में गणेशजी तथा लक्ष्मीजी की मूर्ति रखकर विधिवत पूजा करें।

तत्पश्चात इच्छानुसार  घर की बहू-बेटियों को आशीष और उपहार दें। लक्ष्मी पूजन रात के बारह बजे करने का विशेष महत्व है। इसके लिए एक पाट पर  लाल कपड़ा बिछाकर उस पर एक जोड़ी लक्ष्मी तथा गणेशजी की मूर्ति रखें। समीप ही एक सौ एक रुपए, सवा सेर चावल, गुढ़, चार केले, मूली, हरी ग्वार की फली तथा  पाँच लड्डू रखकर लक्ष्मी-गणेश का पूजन करें। उन्हें लड्डुओं से  भोग लगाएँ। दीपकों का काजल सभी  स्त्री-पुरुष आँखों में लगाएं। फिर रात्रि जागरण कर  गोपाल सहस्रनाम पाठ करें। इस दिन घर में बिल्ली  आए तो उसे भगाएँ नहीं। बड़े-बुजुर्गों के चरणों  की वंदना करें। व्यावसायिक प्रतिष्ठान, गद्दी की भी विधिपूर्वक पूजा करें। रात को बारह बजे दीपावली  पूजन के उपरान्त चूने या गेरू में रुई भिगोकर चक्की, चूल्हा, सिल्ल, लोढ़ा तथा छाज (सूप)  पर कंकू से तिलक  करें। (हालांकि आजकल घरों  मे ये सभी चीजें मौजूद नहीं है लेकिन भारत के गाँवों में और छोटे कस्बों में आज भी  इन सभी चीजों का विशेष महत्व है क्योंकि जीवन और भोजन का आधार ये ही हैं)। दूसरे दिन प्रातःकाल  चार बजे उठकर पुराने छाज में कूड़ा रखकर उसे दूर फेंकने के लिए ले जाते समय कहें 'लक्ष्मी-लक्ष्मी आओ, दरिद्र-दरिद्र जाओ'। लक्ष्मी पूजन के बाद  अपने घर के तुलसी के गमले में, पौधों के गमलों में घर के आसपास मौजूद पेड़ के पास दीपक रखें और  अपने पड़ोसियों के घर भी दीपक रखकर आएं।

मंत्र-पुष्पांजलि:
(अपने हाथों में पुष्प  लेकर निम्न मंत्रों को बोलें):
ॐ यज्ञेन यज्ञमयजन्त  देवास्तानि धर्माणि प्रथमान्यासन्।
तेह नाकं महिमानः सचन्त  यत्र पूर्वे साध्याः सन्ति देवाः ॥
ॐ राजाधिराजाय प्रसह्य  साहिने नमो वयं वैश्रवणाय कुर्महे।
स मे कामान्कामकामाय  मह्यं कामेश्वरो वैश्रवणो ददातु ॥
कुबेराय वैश्रवणाय  महाराजाय नमः।
ॐ महालक्ष्म्यै नमः,  मंत्रपुष्पांजलिं समर्पयामि ।

(हाथ में लिए फूल महालक्ष्मी  पर चढ़ा दें।)
प्रदक्षिणा करें,  साष्टांग प्रणाम करें, अब हाथ जोड़कर निम्न क्षमा प्रार्थना बोलें:

क्षमा प्रार्थना:
आवाहनं न जानामि न  जानामि विसर्जनम्॥
पूजां चैव न जानामि  क्षमस्व परमेश्वरि ॥
मन्त्रहीनं क्रियाहीनं  भक्तिहीनं सुरेश्वरि ।
यत्पूजितं मया देवि  परिपूर्ण तदस्तु मे ॥
त्वमेव माता च पिता  त्वमेव
त्वमेव बन्धुश्च सखा  त्वमेव ।
त्वमेव विद्या द्रविणं  त्वमेव
त्वमेव सर्वम्मम  देवदेव ।
पापोऽहं पापकर्माहं  पापात्मा पापसम्भवः ।
त्राहि माम्परमेशानि  सर्वपापहरा भव ॥
अपराधसहस्राणि क्रियन्तेऽहर्निशं  मया ।
दासोऽयमिति मां मत्वा  क्षमस्व परमेश्वरि ॥

पूजन समर्पण :
हाथ में जल लेकर निम्न  मंत्र बोलें:
'ॐ अनेन यथाशक्ति अर्चनेन  श्री महालक्ष्मीः प्रसीदतुः'
(जल छोड़ दें,  प्रणाम करें)

विसर्जन:
अब हाथ में अक्षत लें (गणेश एवं महालक्ष्मी की प्रतिमा को छोड़कर अन्य सभी) प्रतिष्ठित देवताओं को अक्षत छोड़ते  हुए निम्न मंत्र से विसर्जन कर्म करें:
यान्तु देवगणाः सर्वे  पूजामादाय मामकीम्।
इष्टकामसमृद्धयर्थं  पुनर्अपि पुनरागमनाय च ॥

ॐ आनंद ! ॐ आनंद  !! ॐ आनंद !!!

तत्पश्चात लक्ष्मीजी की आरती करें

ॐ जय लक्ष्मी माता,  मैया जय लक्ष्मी माता ।
तुमको निसदिन सेवत  हर-विष्णु-धाता ॥ॐ जय...
उमा, रमा, ब्रह्माणी, तुम ही जग-माता ।
सूर्य-चन्द्रमा ध्यावत,  नारद ऋषि गाता ॥ॐ जय...
तुम पाताल-निरंजनि,  सुख-सम्पत्ति-दाता ।
जोकोई तुमको ध्यावत,  ऋद्धि-सिद्धि-धन पाता ॥ॐ जय...
तुम पाताल-निवासिनि,  तुम ही शुभदाता ।
कर्म-प्रभाव-प्रकाशिनि,  भवनिधि की त्राता ॥ॐ जय...
जिस घर तुम रहती,  तहँ सब सद्गुण आता ।
सब सम्भव हो जाता,  मन नहिं घबराता ॥ॐ जय...
तुम बिन यज्ञ न होते,  वस्त्र न हो पाता ।
खान-पान का वैभव सब  तुमसे आता ॥ॐ जय...
शुभ-गुण-मंदिर सुन्दर,  क्षीरोदधि-जाता ।
रत्न चतुर्दश तुम बिन  कोई नहिं पाता ॥ॐ जय...
महालक्ष्मीजी की आरती,  जो कई नर गाता ।
उर आनन्द समाता,  पाप शमन हो जाता ॥ॐ जय..

(आरती करके शीतलीकरण  हेतु जल छोड़ें एवं स्वयं आरती लें, पूजा में सम्मिलित सभी लोगों को आरती दें फिर हाथ धो लें।)

परमात्मा की पूजा में  सबसे ज्यादा महत्व है भाव का, किसी भी शास्त्र या धार्मिक पुस्तक में पूजा के साथ धन-संपत्ति को नहीं जो़ड़ा  गया है। इस श्लोक में पूजा के महत्व को दर्शाया गया है-

'पत्रं पुष्पं फलं  तोयं यो मे भक्त्या प्रयच्छति।
तदहं भक्त्यु पहृतमश्नामि  प्रयतात्मनः॥'

पूज्य पांडुरंग शास्त्री अठवलेजी महाराज ने इस श्लोक की व्याख्या इस तरह से की है
'पत्र, पुष्प, फल या जल जो मुझे (ईश्वर को) भक्तिपूर्वक अर्पण करता  है, उस शुद्ध चित्त वाले भक्त के  अर्पण किए हुए पदार्थ को मैं ग्रहण करता हूँ।'
भावना से अर्पण की  हुई अल्प वस्तु को भी भगवान सहर्ष स्वीकार करते हैं।

पूजा में वस्तु का नहीं,  भाव का महत्व है। परंतु मानव जब इतनी  भावावस्था में न रहकर विचारशील जागृत भूमिका पर होता है, तब भी उसे लगता है कि प्रभु पर केवल पत्र, पुष्प, फल या जल चढ़ाना सच्चा पूजन नहीं है। ये सभी तो सच्चे  पूजन में क्या-क्या होना चाहिए, यह समझाने वाले प्रतीक हैं। पत्र यानी पत्ता। भगवान  भोग के नहीं, भाव के भूखे हैं।  भगवान शिवजी बिल्व पत्र से प्रसन्न होते हैं, गणपति दूर्वा को स्नेह से स्वीकारते हैं और तुलसी नारायण-प्रिया  हैं! अल्प मूल्य की वस्तुएं भी हृदयपूर्वक भगवद् चरणों में अर्पण की जाए तो वे अमूल्य  बन जाती हैं। पूजा हृदयपूर्वक होनी चाहिए, ऐसा सूचित करने के लिए ही तो नागवल्ली के हृदयाकार पत्ते का पूजा सामग्री में समावेश  नहीं किया गया होगा न। पत्र यानी वेद-ज्ञान, ऐसा अर्थ तो गीताकार ने खुद ही 'छन्दांसि यस्य पर्णानि' कहकर किया है। भगवान को कुछ दिया जाए वह ज्ञानपूर्वक,  समझपूर्वक या वेदशास्त्र की आज्ञानुसार  दिया जाए, ऐसा यहां अपेक्षित है।  संक्षेप में पूजन के पीछे का अपेक्षित मंत्र ध्यान में रखकर पूजन करना चाहिए। मंत्रशून्य  पूजा केवल एक बाह्य यांत्रिक क्रिया बनी रहती है, जिसकी नीरसता ऊब निर्माण करके मानव को थका देती है। इतना  ही नहीं, आगे चलकर इस पूजाकांड  के लिए मानवके मन में एक प्रकार की अरुचि भी निर्माण होती है। 

साभार, brandbharat.com



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Comments

1

D.R.Sharma | November 02, 2013
BEKAR MEY KUCH SUNKER KUCH POTHI SEY IKATHA KI HUA MATERIAL HAI... ...ITNA SARAL HAI KYA VASTVIK GYAN.. ...FOOT PATH, FACE BOOKS MEY HI MILTA TO GURU KI JARORAT KYA THEE... ...AGAR AISA HOTA TO HAR GHAR MEY LAXMI KA VAAS HOTA.. ...PHIR IS DUNIYA MEY DARIDRTA,KUPOSHAN,ALPA AAUE, AGYAN KAISEY..?? ...IN HI SUB TARIKO KO PADH KER SAMAJ NAPUNSAK HO GAYA HAI.. ...KARM NAHI KARNA CHAHTA..KON BANEGA KARODPATI YA DISTRICT-UNAV KI OR TAKTA HAI... -----BUND KARO YE SUB...

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