संपूर्ण उत्तराखण्ड देवभूमि के नाम से विख्यात है। ऋषि मुनियों की यह पुण्यभूमि आज भी अनेक देवी देवताओं के नाम पर प्रतिष्ठित मन्दिरों को अपनी गोद में आश्रय दिये हुये भारतीय संस्कृति को पोषित कर रही है। प्राचीनकाल से ही भक्तगण अपनी निष्ठा और भावना से अपने ईष्ट की उपासना करते रहते हैं। यहां का जनमानस शाक्त और शैव धर्मावलम्बी रहा है। यही कारण है कि इस तपोभूमि में सर्वत्र शक्तिपीठ एवं शिवालय विद्यमान हैं। उत्तराखण्ड के इन्ही मुक...
प्रकृति की गोद जैसे मनोरम और सुरम्य वातावरण में उत्तरकाशी के सीमान्त क्षेत्र में टौंस नदी के तट पर बसा हनोल स्थित महासू देवता मन्दिर कला और संस्कृति की अनमोल धरोहर है। लम्बे रास्ते की उकताहट और दुर्गम रास्ते से हुई थकान, मन्दिर में पहुंचते ही छूमन्तर हो जाती है और एक नयी ऊर्जा का संचार होता है। "महासू" देवता एक नहीं चार देवताओं का सामूहिक नाम है और स्थानीय भाषा में महासू शब्द "महाशिव" का अपभ्रंश है। चा...
कोटद्वार भाबर क्षेत्र की प्रमुख एतिहासिक धरोहरों में कण्वाश्रम सर्वप्रमुख है जिसका पुराणों में विस्तृत उल्लेख मिलता है। हजारों वर्ष पूर्व पौराणिक युग में जिस मालिनी नदी का उल्लेख मिलता है वह आज भी उसी नाम से पुकारी जाती है...
आदेश्वर महादेव मन्दिर "रानीगढ़" पहुंचने के लिये पौड़ी मुख्यालय से कण्डोलिया होते हुये पौड़ी-कांसखेत-सतपुली मोटर मार्ग पर लगभग १८ कि०मी० का सफर तय करके अदवानी नामक एक छोटे से गांव तक आना पड़ता है। यह पूरा क्षेत्र गढ़वा...
गढ़वाल के पांच महातम्यशाली शिव सिद्धपीठों किलकिलेश्वर, क्यूंकालेश्वर, बिन्देश्वर, एकेश्वर, ताड़केश्वर में किलकिलेश्वर का प्रमुख स्थान है। श्रीनगर के ठीक सामने अलकनन्दा के तट पर विशाल चट्टान पर स्थित यह मन्दिर युगों से अलकनन्...
पालीटेक्निक कालेज श्रीनगर एवं एस० एस० बी० के मध्य में गंगातट के केदारघाट के ऊपर स्थित शंकरमठ श्रीनगर का प्राचीन मन्दिर है। उत्तराखण्ड शैली में बना हुआ यह मन्दिर बहुत आकर्षक है। हालांकि शंकरमठ नाम से इस मन्दिर मठ के शैव होन...
कुंजापुरी शक्तिपीठ ५२ शक्तिपीठों में से एक है। मन्दिर तक पहुंचने के लिये तीर्थनगरी ऋषिकेश से टिहरी राजमार्ग पर पहले लगभग २३ किलोमीटर की दूरी पर स्थित हिन्डोलाखाल नामक एक छोटे से पहाड़ी बाजार तक का सफर तय करना पड़ता है, जहां ...
श्रीनगर में यह मन्दिर अत्यन्त प्रसिद्ध माना जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार मान्यता है कि ब्रह्महत्या के भय से भागते हुये भगवान शिव ने इस स्थान पर नागों अर्थात सर्पों को छुपा दिया था। जिस गली में यह मन्दिर स्थित है उसे स्...
नई टिहरी नगर के शिखर पर पुलिस अधीक्षक कार्यालय समीप स्थित है पंचदेव मन्दिर। नगर की तरह ही पंचदेव मन्दिर भी ज्यादा पुराना नहीं है। मन्दिर की स्थापना के विषय में मन्दिर के पुजारी श्री मुनेन्द्र दत्त उनियाल जी के अनुसार टिहरी...
पौड़ी बस स्टेशन से लगभग तीन किलोमीटर की दूरी पर कण्डोलिया-बुवाखाल मार्ग पर स्थित है घने जंगल के मध्य स्थित है "नागदेव मंदिर"। प्राकृतिक सौन्दर्य से परिपूर्ण घने बांज, बुरांश तथा गगनचुम्बी देवदार, चीड़ के वृक्षों के...
नीलकण्ठ में भगवान महादेव के स्वयं-भू लिंग के रूप में प्रकट होने के समय से पौराणिक काल तक यहां अनेकों प्रसिद्ध मुनिगण आकर जप-तप करते रहे। पौराणिक युग के पश्चात भगवान आद्यशंकराचार्य के उदय होने तक यहां अनेक सिद्धगण रहकर तपस्...