संपूर्ण उत्तराखण्ड देवभूमि के नाम से विख्यात है। ऋषि मुनियों की यह पुण्यभूमि आज भी अनेक देवी देवताओं के नाम पर प्रतिष्ठित मन्दिरों को अपनी गोद में आश्रय दिये हुये भारतीय संस्कृति को पोषित कर रही है। प्राचीनकाल से ही भक्तगण अपनी निष्ठा और भावना से अपने ईष्ट की उपासना करते रहते हैं। यहां का जनमानस शाक्त और शैव धर्मावलम्बी रहा है। यही कारण है कि इस तपोभूमि में सर्वत्र शक्तिपीठ एवं शिवालय विद्यमान हैं। उत्तराखण्ड के इन्ही मुक...
प्रकृति की गोद जैसे मनोरम और सुरम्य वातावरण में उत्तरकाशी के सीमान्त क्षेत्र में टौंस नदी के तट पर बसा हनोल स्थित महासू देवता मन्दिर कला और संस्कृति की अनमोल धरोहर है। लम्बे रास्ते की उकताहट और दुर्गम रास्ते से हुई थकान, मन्दिर में पहुंचते ही छूमन्तर हो जाती है और एक नयी ऊर्जा का संचार होता है। "महासू" देवता एक नहीं चार देवताओं का सामूहिक नाम है और स्थानीय भाषा में महासू शब्द "महाशिव" का अपभ्रंश है। चा...
नीलकण्ठ महादेव की गणना उत्तर भारत के मुख्य शिवमन्दिरों में की जाती है संभवतया इसीलिये भगवान नीलकण्ठ महादेव सर्वाधिक लोकप्रिय व महत्वपूर्ण है। नीलकण्ठ महादेव का मन्दिर जनपद पौड़ी के यमकेश्वर विकासखण्ड के अन्तर्गत गांव पुण्डा...
राष्ट्रीय राजमार्ग ११९ पर कोटद्वार-पौड़ी के मध्य कोटद्वार से लगभग ५४ कि०मी० तथा पौड़ी से ५२ कि०मी० की दूरी पर स्थित है सतपुली। समुद्र तल से ६५७ मीटर की ऊंचाई पर पूर्वी नयार नदी के किनारे स्थित यह छोटा सा पर्वतीय नगर है। नयार...
आदेश्वर महादेव मन्दिर "रानीगढ़" पहुंचने के लिये पौड़ी मुख्यालय से कण्डोलिया होते हुये पौड़ी-कांसखेत-सतपुली मोटर मार्ग पर लगभग १८ कि०मी० का सफर तय करके अदवानी नामक एक छोटे से गांव तक आना पड़ता है। यह पूरा क्षेत्र गढ़वा...
उत्तराखंड के बागेश्वर जनपद से करीब ३० कि०मी० दूर माँ नन्दा भगवती का भव्य मंदिर पोथिंग नामक गाँव में स्थित है। जो कपकोट क्षेत्र के अन्तर्गत आता है। यह मंदिर क्षेत्रवासियों को ही नहीं बल्कि दूर-दराज के लोगों को भी अपनी भव्यत...
नीलकण्ठ के समीप ब्रह्मकूट पर्वत के शिखर पर भौन गांव में स्थित है श्री भुवनेश्वरी सिद्धपीठ। यहां तक पहुचने के लिये नीलकण्ठ से दो रास्ते हैं पहला पैदल मार्ग है जो कि नीलकण्ठ से सिद्धेश्वर बाबा के मन्दिर होते हुये लगभग डेढ़ कि...
शीतलामाता को राजस्थान में जगतरानी के नाम से जाना जाता है। स्थानीय नागरिकों में मन्दिर का बहुत महातम्य है। कहा जाता है कि भक्तों की मनोकामना को माता शीतला अवश्य पूरा करती है। कहा जाता है कि शंकराचार्य को यहीं पर हैजे की अत्...
पौड़ी गढ़वाल के बिलखेत, सांगुड़ा स्थित मां भुवनेश्वरी सिद्धपीठ पहुंचने के लिये राष्ट्रीय राजमार्ग ११९ पर कोटद्वार-पौड़ी के मध्य कोटद्वार से लगभग ५४ कि०मी० तथा पौड़ी से ५२ कि०मी० की दूरी पर स्थित एक छोटे से कस्बे सतपुली तक पहुंच...
सरस्वती शिशु मन्दिर बौराड़ी नई टिहरी के पीछे स्थित है लक्ष्मी-नारायण मन्दिर। पुरानी टिहरी नगर में अन्य मन्दिरों की भांति लक्ष्मी-नारायण मन्दिर भी राजा के अधीनस्थ था। टिहरी बांध परियोजना के कारण जब नगर का विस्थापन होने...
नीलकण्ठ में भगवान महादेव के स्वयं-भू लिंग के रूप में प्रकट होने के समय से पौराणिक काल तक यहां अनेकों प्रसिद्ध मुनिगण आकर जप-तप करते रहे। पौराणिक युग के पश्चात भगवान आद्यशंकराचार्य के उदय होने तक यहां अनेक सिद्धगण रहकर तपस्...